"आर्केसिलाउस" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति १: पंक्ति १:
 +
{{भारतकोश पर बने लेख}}
 
{{लेख सूचना
 
{{लेख सूचना
 
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
 
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1

०९:१४, १६ जून २०१८ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
आर्केसिलाउस
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 430
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भोलानाथ शर्मा

आर्केसिलाउस (अथवा सिसरोया किकरो के अनुसार आर्केसिलास्‌) एक यूनानी दार्शनिक जो संदेहवाही अकादेमी के प्रवर्तक थे। इनका समय ई.पू. 315 से ई.पू. 214-5 तक है। इनका जन्मस्थान पिताने नगर था। एथेंस में आकर प्रथम यह अरस्तू के लीकियुम में थियफ्रोास्तस्‌ के शिष्य बने, पर क्रांतर नामक विद्धान्‌ इन्हें प्लातोन की आकदेमी में ले आया। ई. पू. 238-8 के लगभग ये अपनी प्रतिभा के कारण अकादेमी के अध्यक्ष बन गए। इनकी कोई भी रचना नहीं मिलती। इन्होंने स्तोइक (विरक्तिवादी) दार्शनिकों के 'विश्वासोत्पादक प्रत्यक्ष' का खंडन कर संदेहवाद का प्रतिपादन किया और सुकरात की विवेचनापद्धति को पुन: प्रतिष्ठित किया। पर यह समझ में नहीं आता कि इस संदेहवाद की संगति अकादमी के संस्थापक प्लातोन के विचारों के साथ कैसे संभव हुई।


टीका टिप्पणी और संदर्भ