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लेख सूचना
आश्रव
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 460
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक डॉ. भिजु जगदीश काश्यप

आश्रव बौद्ध अभिधर्म के अनुसार आश्रव चार होते हैं-कामाश्रव, भवाश्रव, दृष्ट्याश्रव और अविद्याश्रव। ये प्राणी के चित्त में आ पड़ते हैं और उसे भवचक्र में बाँधे रहते हैं। मुमुक्ष योगी इन आश्रवों से छूटकर अर्हत्‌ पद का लाभ करता है। भारतीय दर्शन की दूसरी परंपराओं में भी आत्मा को मलिन करनेवाले तत्व आश्रव के नाम से अभिहित किए गए हैं। उनके स्वरूप के विस्तार में भेद होते हुए भी यह समानता है कि आश्रव चित्त के मल है जिनका निराकरण आवश्यक है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ