"एफ़ेबी" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति १: पंक्ति १:
 +
{{भारतकोश पर बने लेख}}
 
{{लेख सूचना
 
{{लेख सूचना
 
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
 
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2

१०:४३, १४ जुलाई २०१८ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
एफ़ेबी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 242
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक स्वर्गीय भोलानाथ शर्मा

एफ़ेबी का सामान्य आशय तरुणसमूह है, पर यूनान में इसका कानूनी अर्थ युवकों का सैन्य संगठन होता था। एथेंस में संभवतया (खाइरोनिया की पराजय के पश्चात्‌) ई.पू. 338 के आसपास यह नियम बना दिया गया था कि प्रत्येक नवयुवक (एफ़ेबस) को 18 वर्ष की अवस्था हो जाने पर नगरराष्ट्र के सैन्य संगठन में भर्ती होना पड़ेगा। एक वर्ष तक इन लोगों को सैनिक प्रशिक्षण दिया जाता था और इन दिनों उनको अत्यंत कठोर अनुशासन में रहना पड़ता था। एक कबीले के नवयुवक एक साथ ही रहते और भोजन करते थे। प्रशिक्षण की समाप्ति के पश्चात्‌ इनको एक वर्ष तक दुर्गरक्षण और रक्षीचर्या का कार्य करना पड़ता था। इनके शारीरिक, सैनिक और नाविक (अर्थात्‌ नौसैनिक) व्यायाम की शिक्षा के लिए छह शिक्षक नियुक्त किए जाते थे तथा ढाल प्रदान की जाती थी और वह शपथ लेता था कि वह अपने आयुधों को लजाएगा नहीं। उसका कर्तव्य था सार्वजनिक कार्यो तथा जनसंमिलनी में उपस्थित होना, यात्राओं में भाग लेना और अध्ययन करना। प्रशिक्षण काल में उसको छोटे केश धारण करने पड़ते थे और एक विशेष प्रकार की टोपी और छोटा अँगरखा पहनना पड़ता था तथा इस समय वह करों से मुक्त रहता था।

एथेंस में ई.पू. तीसरी सदी में युवकों की संख्या में ्ह्रास होने के कारण सैनिक शिक्षण और सेवा का काल घटाकर आधा, अर्थात्‌ एक वर्ष कर दिया गया। एथेंस का अनुकरण कर अन्य नगरराष्ट्रों ने भी इस पद्धति को अपनाया। रोमन साम्राज्य काल में यह संस्था सांस्कृतिक संस्था भर रह गई थी और इसपर सरकारी नियंत्रण नहीं रहा।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं–अरिस्तू की राजनीति और एथेंस का संविधान भोलानाथ शर्मा द्वारा हिंदी अनुवाद, 1956 ई.