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ऐल्ब्युमिनमेह
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 284 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैंडनाक जान डामनिक |
ऐल्ब्युमिनमेह एक रोग है, जिसमें मूत्र में ऐलब्युमिन उपस्थित मिलता है। मूत्र को गरम करके उसमें नाइट्रिक या सल्फ़ोसैलिसिलिक अम्ल मिलाकर ऐलब्युमिन की जाँच की जाती है। बेस जोंस नामक प्रोटीनों की उपस्थिति में 55रू सें. तक गरम करने पर गँदलापन आने लगता है। किंतु 80रू सें. तक उसे गरम करने पर गँदलापन जाता रहता है। इस गँदलेपन को मापा जा सकता है और कैलोरीमापक विधि से उसकी मात्रा भी ज्ञात की जा सकती है। निम्नलिखित रोगों में ऐलब्युमिन मूत्र में पाया जाता है:
वृक्कार्ति, जिसमें वृक्क में शोथ हो जाता है।
गोणिकार्ति, जिसमें शोथ वृक्क-गोणिका में परिमित रहता है।
मूत्राशयार्ति, जिसमें मूत्राशय में शोथ होता है।
मूत्रमागीर्ति, जिसमें मूत्रमार्ग की भित्तियाँ शोथयुक्त हो जाती हैं।
वृक्क का अमिलाइड रोग।
हृद्रोग, ज्वर, गर्भावस्था की रक्तविषाक्ता, मधुमेह और उच्च-रक्त-दाब।
प्राय: वृक्कार्ति तथा अमिलाइड रोगों में ऐलब्युमिन की मात्रा अधिक होती है, जिससे रक्त में प्रोटीन की कमी हो जाती है। इसके कारण शरीर पर शोथ हो जाता है तथा रक्त की रसाकर्षण-दाब भी कम हो जाती है। ऐलब्युमिनमेह स्वयं कोई रोग नहीं है; वह उपर्युक्त रोगों का केवल एक लक्षण है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ