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लेख सूचना
कांस्टैटिन दिमित्रिविच ग्लिंका
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 89
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक रामप्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक शिव गोपाल मिश्र

ग्लिंका, कांस्टैंटिन दिमित्रिविच (सन्‌ 1867-1927) रूस के विख्यात भूमितत्ववेत्ता (pedologist) थे। इनका जन्म स्मोलेंस्क में सन्‌ 1867 में हुआ तथा इनकी शिक्षा सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ रूस के सुप्रसिद्ध भूविज्ञानवेत्ता दाकुशेव (Dockuchaev) के शिष्यत्व में इन्होंने सन्‌ 1889 में खनिज में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। फिर जब दाकुशेव को नोवो ऐलेक्जैंड्रिया कृषि महाविद्यालय के नवनिर्माण का कार्यभार प्रदान किया गया तब उन्होंने ग्लिंका को बुलाकर खनिज विज्ञान तथा भौमिकी की 'चेयर' प्रदान की। सन्‌ 1899 में, जब प्रोफेसर सिबिर्तज़ेव (Sibirtzev) की मृत्यु हो गई तब इन्हें भूमितत्व विज्ञान की प्रोफेसरी मिली। भू संबंधी एवं शोध के लिये ग्लिंका ने रूस तथा पश्चिमी यूरोप के अनेक बार परिभ्रमण किए और इन अनुभवों का संकलन दो पुस्तकों में किया जिनके नाम हैं, पाँचवोवेदेनी (Pochvovedenie) तथा दि ग्रेट सॉएल ग्रूप्स ऑव दि वर्ल्ड ऐंड देयर डेवेलपमेंट। दूसरी पुस्तक का अनुवाद जर्मन भाषा में, सर्वप्रथम सन्‌ 1914 में, स्ट्रेमै (Stremme) द्वारा किया गया। सन्‌ 1928 में इसका अंग्रेजी अनुवाद मार्बट (Marbut) ने प्रस्तुत किया। इसी अनुवाद के माध्यम से पश्चिमी जगत ने ग्लिंका के कार्य का परिचय पहली बार प्राप्त किया। फिर तो सभी ने इन्हें मृत्तिका विज्ञान की नवशाखा भूमितत्व विज्ञान की नेता घोषित कर दिया।

सन्‌ 1927 ई. में भूविज्ञान की प्रथम अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में संमिलित होने के लिय ग्लिंका संयुक्त राज्य, अमरीका, गए। द्वितीय अंतरराष्ट्रीय भूविज्ञान सोसाइटी के अध्यक्ष के रूप में इनका नाम भी प्रस्तावित हुआ था, परंतु दुर्भाग्यवश ये जीवित न रह सके। अमरीका से लौटने के बद आमाशय के कैंसर से पीड़ित होकर 2 नवंबर , सन्‌ 1927 को ये स्वर्गवासी हुए।

ग्लिंका का नाम मृत्तिका विज्ञान में इसलिये अमर रहेगा कि इन्होंने अपने गुरु दाकुशेव द्वारा प्रस्तुत मृत्तिका वर्गीकरण संबंधी सिद्धांत को आगे बढ़ाया। इन्होंने मृत्तिका वर्गीकरण में पार्श्वचित्र (profile) की वयस्कता (maturity) एवं जल द्वारा उसके सकर्षण (leaching) की तीव्रता पर बल दिया। फलत: इनके द्वारा प्रस्तावित मिट्टयों का वर्गीकरण अधिक सफल एवं पूर्ण है। इन्होंने मिट्टियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित करते हुए उनके उपवर्गों में विभाजन की योजना बनाई :

1- बाह्य विकासमान मिट्टियाँ (nktodyeamomorpohic soils) ऐसी मिट्टियाँ हैं, जिनके गुणों पर मृत्तिका निर्मण के बाह्य कारकों का प्रभाव है। ऐसी मिट्टियों में लैटराइट, लाल तथा पीली मिट्टियाँ, पाडजाल, भूरी जंगली मिट्टियाँ, काली मिट्टियाँ, चेस्टनट तथा उससे संबद्ध मिट्टियाँ, पीट तथा पहाड़ी मिट्टियाँ, लवणीय तथा क्षारीय मिट्टियाँ प्रमुख हैं।

2- अंतर विकासमान मिट्टियाँ ऐसी मिट्टियाँ हैं, जिनके गुणों पर मुख्य रूप से पितृपदार्थ का प्रभाव पड़ा है।

ऐसी मिट्टियों में रेंडीजना या ह्यूमस कार्बोनेट मिट्टियाँ तथा संस्थान मिट्टियाँ (Skeletal soils) प्रमुख हैं।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं. ग्रं. - जे. एस. जाफे : 'पेडॉलोजी'।