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कुणाल हिमालय की सात झीलों में एक। यह अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए अत्यंत प्रसिद्ध थी और बौद्ध संघ में शामिल शाक्य राजकुमारों को उनके पूर्वजीवन की स्त्री-सुख-लिप्साओं से विरत करने के लिए भगवान्‌ बुद्ध ने वहाँ कुणालजा तक का प्रवचन दिया था। बौद्ध कथाओं के अनुसार यहाँ के वन्य प्रदेशों में बोधिसत्व ने एक बार चित्रकोकिलों के राजा के रूप में जन्म ग्रहण किया था। उस बोधिसत्व का नाम भी कुणाल था।
कुणाल हिमालय की सात झीलों में एक। यह अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए अत्यंत प्रसिद्ध थी और बौद्ध संघ में शामिल शाक्य राजकुमारों को उनके पूर्वजीवन की स्त्री-सुख-लिप्साओं से विरत करने के लिए भगवान्‌ बुद्ध ने वहाँ कुणालजा तक का प्रवचन दिया था। बौद्ध कथाओं के अनुसार यहाँ के वन्य प्रदेशों में बोधिसत्व ने एक बार चित्रकोकिलों के राजा के रूप में जन्म ग्रहण किया था। उस बोधिसत्व का नाम भी कुणाल था।



११:०९, २५ जुलाई २०१८ के समय का अवतरण

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कुणाल हिमालय की सात झीलों में एक। यह अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए अत्यंत प्रसिद्ध थी और बौद्ध संघ में शामिल शाक्य राजकुमारों को उनके पूर्वजीवन की स्त्री-सुख-लिप्साओं से विरत करने के लिए भगवान्‌ बुद्ध ने वहाँ कुणालजा तक का प्रवचन दिया था। बौद्ध कथाओं के अनुसार यहाँ के वन्य प्रदेशों में बोधिसत्व ने एक बार चित्रकोकिलों के राजा के रूप में जन्म ग्रहण किया था। उस बोधिसत्व का नाम भी कुणाल था।

  • जैन अनुश्रुतियों के अनुसार हिमालय से लगा एक प्रख्यात प्राचीन जनपद जिसकी राजधानी श्रावस्ती (आधुनिक सहेत महेत, जिला गोंडा) थी।
  • कुणाल पक्षी जो अपनी सुंदर आँखों के लिए प्रसिद्ध है।
  • अशोक का पुत्र। भारतीय साहित्य में यही सर्वाधिक प्रसिद्ध है। दिव्यावदान के अशोकावादन और कुणालावदान में उनके जीवन से संबंधित अनेक कहानियां हैं। सर्वप्रसिद्ध कथा है कि अशोक की एक रानी तिष्यरक्षिता (पालि साहित्य की तिस्सरक्खिता) थी, जो सम्राट् से अवस्था में बहुत ही कम और स्वभाव से अत्यंत कामातुर थी। कुणाल की सुंदर आँखों पर मुग्ध होकर उसने उससे प्रणप्रस्ताव किया। उसके पुत्रकक्ष कुणाल के लिए उस प्रस्ताव को ठुकरा देना अत्यंत स्वाभाविक था। पर तिष्यरक्षिता इसे भुला न सकी। जब एक बार अशोक बीमार पड़ा तब तिष्यरक्षिता ने उसकी भरपूर सेवा करके मुँहमागा वर प्राप्त करने का वचन उससे ले लिया। तक्षशिला में विद्रोह होने पर जब कुणाल उसे दबाने के लिए भेजा गया तब तिष्यरक्षियता ने अपने वरण में सम्राट, अशोक की राजमुद्रा प्राप्तकर तक्षशिला के मंत्रियों को कुणाल की आँखें निकाल लेने तथा उसे मार डालने की मुद्रांकित आज्ञा लिख भेजी। शक्तिशाली किंतु अनिच्छुक मंत्रियों ने जनप्रिय कुणाल की आँखें तो निकलवा ली परंतु उसके प्राण छोड़ दिए। अशोक को जब इसका पता चला तो उसने तिष्यरक्षिता को दंडस्वरूप जीवित जला देने की आज्ञा दी। किंतु कुछ विद्वान्‌ इस क था को ऐतिहासिक नहीं मानते। प्रसिद्ध विद्वान्‌ प्रजीलुस्की ने कुणाल सूत्र के चीनी रूपांतर को प्रस्तुत किया है। इस सूत्र के अनुसार तक्षशिला में कोई विद्रोह ही नहीं हुआ था। वस्तुत: कुणाल वहाँ की जनता की माँग पर अशोक द्वारा एक स्वतंत्र राजा के रूप में नियुक्त किया गया था। संभव है, आगे चलकर वहाँ के गांधार प्रदेश में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना हो गई हो। कुणाल का संबंध कश्मीर और पामीरवर्ती प्रदेशों से भी रहा है जो अनेक प्रमाणों से सिद्ध है। कुछ पुराणों (वायु, बह्मांड) में कुणाल को अशोक का उत्तराधिकारी भी बताया गया है

टीका टिप्पणी और संदर्भ