"कृष्णादास": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{भारतकोश पर बने लेख}}
{{लेख सूचना
{{लेख सूचना
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3

०७:२४, ७ अगस्त २०१८ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
कृष्णादास
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 110
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

कृष्णदास (1) अष्टछाप के कवि जिनका महत्वक्रम में चौथा स्थान है। उनका जन्म 1495 ई. के आसपास गुजरात प्रदेश में चिलोतरा ग्राम के एक कुनबी पाटिल परिवार में हुआ था। बचपन से ही प्रकृत्ति बड़ी सात्विक थी। जब वे 12-13 वर्ष के थे तो उन्होंने अपने पिता को चोरी करते देखा और उन्हें गिरफ्तार करा दिया फलत: वे पाटिल पद से हटा दिए गए। इस कारण पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया। वे भ्रमण करते हुए ब्रज पहुँचे। उन्हीं दिनों नवीन मंदिर में श्रीनाथ जी की मूर्ति की प्रतिष्ठा करने की तैयारी हो रही थी। श्रीनाथ जी के दर्शन से वे बहुत प्रभावित हुए और वल्लभाचार्य से उनके संप्रदाय की दीक्षा ली। उनकी असाधारण बुद्धिमत्ता, व्यवहार कुशलता और संघटन योयता से प्रभावित होकर वल्लभाचार्य ने उन्हें भेटिया (भेंट संग्रह करनेवाला) के पद पर नियुक्त किया और फिर शीघ्र उन्हें श्रीनाथ जी के मंदिर का अधिकारी बना दिया। उन्होंने अपने इस उत्तरदायित्व का बड़ी योग्यता से निर्वाह किया। कृष्णदास को सांप्रदायिक सिद्धांतों का अच्छा ज्ञान था जिसके कारण वे अपने संप्रदाय के अग्रगण्य लोगों में माने जाते थे। उन्होंने समय-समय पर कृष्ण लीला प्रसंगों पर पद रचना की जिनकी संख्या लगभग 250 है जो राग कल्पद्रुम, राग रत्नाकर तथा संप्रदाय के कीर्तन संग्रहों में उपलब्ध हैं। 1575 और 1581 ई. के बची किसी समय उनका देहावासन हुआ। (प. ला. गु.)

(2) माधव आचार्य के सेवक जिन्होंने भागवत पर आधारित श्रीकृष्ण मंगल नामक एक छोटे से ग्रंथ की रचना की है। इनके पिता का नाम यादवानंद और माता का नाम पद्मावती था। इनका परिवार गंगा के पश्चिमी किनारे के किसी प्रदेश में रहता था। इन्होंने अपने ग्रंथ में श्रीमती ईश्वरी का उल्लेख अपने गुरु के रूप में किया है। वे कदाचित्‌ नित्यानंद की पत्नी ज्ह्रावी देवी थी। ((श्रीमति) रत्नकुमारी.)

(3) इनका दूसरा नाम श्यामानंद था। इनका समय 1583 ई. के आसपास है। ये धारेंद्रा बहादुरपुर के निवासी थे। पदकल्पतरु में प्राप्त तीन पदों से यह ज्ञात होता है कि गौरीदास पंडित इनके गुरु थे। इनकी जीवनी कुछ विस्तार से भक्तिरत्नाकार में पाई जाती है। नरोत्तम दास के एक पद में भी इनकी चर्चा मिलती है। इनकी ख्याति विद्वत्ता एवं प्रचारकार्य के लिये है। इन्होंने वृदांवन में रहकर जीव गोस्वामी से वैष्णव शास्त्रों का अध्ययन किया था। उसके बाद श्रीनिवास आचार्य एवं नरोत्तमदास के साथ बंगाल आए एवं उड़ीसा में वैष्णव धर्म का प्रचार किया। ((श्रीमति) रत्नकुमारी)

माधुर्य भक्ति को स्वीकार करनेवाले कवि। ये मिर्जापुर निवासी और निंबार्क संप्रदाय के अनुयायी थे। इनकी एक प्रख्यात रचना मार्धुय लहरी है। इसमें उन्होंने राधाकृष्ण के नित्य विहार के प्रसंगों का अत्यंत सरस एवं सुश्लिष्ट वर्णन किया है। संस्कृतनिष्ठ भाषा और गीतिका छंद में इसकी रचना हुई है। इस ग्रंथ की पुष्पिका के अनुसार इसकी रचना संवत्‌ 1852-53 (1795-96 ई.) में हुई थी। वृंदावन में इनका बनवाया हुआ कुंज मिरजापुरवाली कुंज के नाम से आज भी वर्तमान है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ