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पूर्वी रोमन साम्राज्य के प्रसिद्ध सम्राट् जुस्तिनिअन का जन्म ११ मई सन् ४८३ को हुआ। इसका पहला नाम 'उप्रादा' था, परंतु कुस्तुनतुनियाँ में शिक्षा प्राप्त करने और उसके चाचा जुस्तिन द्वारा उसे गोद लिए जाने के पश्चात् उसने अपना नाम बदल कर जुस्तिनिअन कर लिया। सन् ५२७ में चाचा की मृत्यु के बाद वह सिंहासनारूढ़ हुआ और सन् ५६५ में अपनी मृत्यु तक शासन करता रहा। | पूर्वी रोमन साम्राज्य के प्रसिद्ध सम्राट् जुस्तिनिअन का जन्म ११ मई सन् ४८३ को हुआ। इसका पहला नाम 'उप्रादा' था, परंतु कुस्तुनतुनियाँ में शिक्षा प्राप्त करने और उसके चाचा जुस्तिन द्वारा उसे गोद लिए जाने के पश्चात् उसने अपना नाम बदल कर जुस्तिनिअन कर लिया। सन् ५२७ में चाचा की मृत्यु के बाद वह सिंहासनारूढ़ हुआ और सन् ५६५ में अपनी मृत्यु तक शासन करता रहा। |
०६:५३, २ अगस्त २०११ का अवतरण
जुस्तिनिअन प्रथम
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 28 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | सत्यदेव विद्यालंकार (स्वर्गीय) पत्रकार |
- जुस्तिनियन प्रथम (४८३-५६५)
पूर्वी रोमन साम्राज्य के प्रसिद्ध सम्राट् जुस्तिनिअन का जन्म ११ मई सन् ४८३ को हुआ। इसका पहला नाम 'उप्रादा' था, परंतु कुस्तुनतुनियाँ में शिक्षा प्राप्त करने और उसके चाचा जुस्तिन द्वारा उसे गोद लिए जाने के पश्चात् उसने अपना नाम बदल कर जुस्तिनिअन कर लिया। सन् ५२७ में चाचा की मृत्यु के बाद वह सिंहासनारूढ़ हुआ और सन् ५६५ में अपनी मृत्यु तक शासन करता रहा।
शासनारूड़ होने के बाद जुस्तिनिअन ने अपना ध्यान अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर लगाया। उसकी सेना को विदेशों से अनेक युद्ध लड़ने पड़े। सन् ५२९ से लेकर ५३२ तक फारस के साथ उसका युद्ध होता रहा। इन युद्धों में उसके सेनापति बोलिसारियस को महत्वपूर्ण सफलताएँ मिलीं लेकिन इन सफलताओं से जुस्तिनिअन का कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। उसने फारस के साथ संघर्ष से बचने के लिये उससे शांतिसंधि कर ली और उसे वार्षिक रूप से एक निश्चित धनराशि देने लगा। ५३३ में बोलिसारियस बंडालों को जीतकर सिसली होता हुआ इटली पहुँचा और उसे साम्राज्य में मिला लिया। परंतु अपनी सैनिक दुर्बलता के कारण जुस्तिनिअन इटली पर स्थायी प्रभुत्व नहीं स्थापित कर सका। स्पेन को भी विजय करने का उसका प्रयत्न सफल नहीं रहा। उसके शासन काल में डेन्यूब तट की बर्बर जातियाँ भी उसके लिये सिर दर्द बनी रहीं। ५५९ में कुस्तुनतुनियाँ की रक्षा के लिये सेवानिवृत्त बोलिसारियस को बुलाने के लिये भी उसे बाध्य होना पड़ा था।
जुस्तिनिअन प्रमुखत: 'रोमन ला' को व्यवस्थित बनाने के लिये प्रसिद्ध है। इस कार्य के लिये सभी रोमन सम्राटों की राजाज्ञा और आज्ञापत्र का पर्यवेक्षण कर, पुनरावृत्ति को बचाकर उनका एक कोड बनाया गया जो ५२९ में प्रकाशित हुआ। न्यायायिकों के मत और मान्यताओं का भी संग्रह किया गया जिसके परिणामस्वरूप 'डाइजेस्ट' जैसे विशाल ग्रंथ का प्रकाशन हुआ जिसमें प्रसिद्ध विधि-विशेषज्ञों की लगभग १०,००० मान्यताओं का संग्रह है। अंत में जुस्तिनिअन ने 'रोमन ला' की एक पाठ्य पुस्तक तैयार करने का आदेश दिया और 'इंस्टीट्यूट्स' नामक ग्रंथ तैयार हुआ। बाद में इन सबको मिलाकर दस खंडों का प्रसिद्ध 'कार्पस जूरिस सिविलस' प्रकाशित किया गया। यही रोमन ला का मुख्य स्त्रोत है।
जुस्तिनिअन की महानता के संबंध में कोई संदेह नहीं लेकिन यह तथ्य भुलाया नहीं जा सकता कि उसे बहुत ही योग्य सहायकों का सहयोग प्राप्त था। बेलिसारियस महान् सेनाध्यक्ष और त्रिबोनियन योग्य न्यायाधीश था। इसके अतिरिक्त राजकुमारी थिओदोस ने उसके शासन में सक्रिय रुचि लेकर उसमें हाथ बँटाया। जुस्तिनिअन के चरित्र की पवित्रता और उसकी नैतिकता का परिचय इससे मिलता है कि उसका धर्मशास्त्र में विश्वास था और उसने धार्मिक पाखंडों को दूर करने का बहुत प्रयत्न किया। उसने कई चर्च बनवाए जिनमें कुस्तुनतुनियाँ के सैंट सोफिया चर्च की तो संसार की अद्भुत वस्तुओं में गणना होती है।
यद्यपि जुस्तिनिअन में महान् शासक की सूझ बूझ, दूरदर्शिता और प्रतिभा का अभाव था फिर भी वह एक योग्य और परिश्रमी शासक था, इसमें संदेह नहीं।