"कुलोत्तुंग तृतीय": अवतरणों में अंतर
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'''कुलोत्तुंग तृतीय''' (१२०५-१२१८ ई.) यह चोल राज्य के वैभव के अपकर्षकाल का शासक था। इसने पहले तो पांड्य नरेश जटावर्मन कुलेश्वर को बुरी तरह पराजित किया था। बाद में उसने होयसल नरेश वल्लाल (द्वितीय) की सहायता से ही अपने राज्य पर अधिकार प्राप्त किया; किंतु उसे पांड्य नरेश की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। इसकी ख्याति कुभकोणम् के निकट त्रिभुवनम् में कंपहरेश्वर का मंदिर बनवाने के लिए हैं। इसके ही शासनकाल में कंबन ने रामावतारम् <ref>तमिल रामायण</ref> की रचना की थी। | '''कुलोत्तुंग तृतीय''' (१२०५-१२१८ ई.) यह चोल राज्य के वैभव के अपकर्षकाल का शासक था। इसने पहले तो पांड्य नरेश जटावर्मन कुलेश्वर को बुरी तरह पराजित किया था। बाद में उसने होयसल नरेश वल्लाल (द्वितीय) की सहायता से ही अपने राज्य पर अधिकार प्राप्त किया; किंतु उसे पांड्य नरेश की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। इसकी ख्याति कुभकोणम् के निकट त्रिभुवनम् में कंपहरेश्वर का मंदिर बनवाने के लिए हैं। इसके ही शासनकाल में कंबन ने रामावतारम् <ref>तमिल रामायण</ref> की रचना की थी। | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
११:१५, ३ सितम्बर २०११ का अवतरण
कुलोत्तुंग तृतीय (१२०५-१२१८ ई.) यह चोल राज्य के वैभव के अपकर्षकाल का शासक था। इसने पहले तो पांड्य नरेश जटावर्मन कुलेश्वर को बुरी तरह पराजित किया था। बाद में उसने होयसल नरेश वल्लाल (द्वितीय) की सहायता से ही अपने राज्य पर अधिकार प्राप्त किया; किंतु उसे पांड्य नरेश की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। इसकी ख्याति कुभकोणम् के निकट त्रिभुवनम् में कंपहरेश्वर का मंदिर बनवाने के लिए हैं। इसके ही शासनकाल में कंबन ने रामावतारम् [१] की रचना की थी।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ तमिल रामायण