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१२:४४, ३ सितम्बर २०११ का अवतरण

लेख सूचना
कमल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 408-409
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1975 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक मोहम्मद सैयदौद्दीन, भगवानदास वर्मा

कमल भारत का सबसे प्रसिद्ध फूल है। संस्कृत में इसके नाम हैं-कमल, पद्म, पंकज, पंकरुह, सरसिज, सरोज, सरोरुह, सरसीरुह, जलज, जलजात, नीरज, वारिज, अंभोरुह, अंबुज, अंभोज, अब्ज, अरविंद, नलिन, उत्पल, पुडरीक, तामरस, इंदीवर, कुवलय, वनज आदि आदि। फारसी में कमल को नीलोफ़र कहते हैं और अंग्रेजी में इंडियन लोटस या सैक्रेड लोटस, चाइनीज़ वाटर-लिली, ईजिप्शियन या पाइथागोरियन बीन। इसका वनस्पति वैज्ञानिक लैटिन नाम नीलंबियन न्यूसिफ़ेरा है।

कमल का वृक्ष (कमलिनी, नलिनी, पद्मिनी) पानी में ही उत्पन्न होता है और भारत के सभी उष्ण भागों में तथा ईरान से लेकर आर्स्टेलिया तक पाया जाता है। कमल का फूल सफेद या गुलाबी रंग का होता है और पत्ते लगभग गोल, ढाल जैसे, होते हैं। पत्तों की लंबी ड़डियों और नसों से एक तरह का रेशा निकाला जाता है जिससे मंदिरों के दीपों की बत्तियाँ बनाई जाती हैं। कहते हैं, इस रेशे से तैयार किया हुआ कपड़ा पहनने से अनेक रोग दूर हो जाते हैं। कमल के तने लंबे, सीधे और खोखले होते हैं तथा पानी के नीचे कीचड़ में चारों ओर फैलते हैं। तनों की गाँठों पर से जड़ें निकलती हैं।

कमल के पौधे के प्रत्येक भाग के अलग-अलग नाम हैं और उसका प्रत्येक भाग चिकित्सा में उपयोगी है-अनेक आयुर्वेदिक, एलोपैथिक और यूनानी औषधियाँ कमल के भिन्न-भिन्न भागों से बनाई जाती हैं। चीन और मलाया के निवासी भी कमल का औषधि के रूप में उपयोग करते हैं। कमल के फूलों का विशेष उपयोग पूजा और श्रृंगार में होता है। इसके पत्तों को पत्तल के स्थान पर काम में लाया जाता है। बीजों का उपयोग अनेक औषधियों में होता है और उन्हें भूनकर मखाने बनाए जाते हैं। तनों (मृणाल, बिस, मिस, मसींडा) से अत्यंत स्वादिष्ट शाक बनता है।

भारत की पौराणिक गाथाओं में कमल का विशेष स्थान है। पुराणों में ब्रह्मा को विष्णु की नाभि से निकले हुए कमल से उत्पन्न बताया गया है और लक्ष्मी को पद्मा, कमला और कमलासना कहा गया है। चतुर्भुज विष्णु को शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करनेवाला माना जाता है। भारतीय मंदिरों में स्थान-स्थान पर कमल के चित्र अथवा संकेत पाए जाते हं। भगवान्‌ बुद्ध की जितनी मूर्तियाँ मिली हैं, प्राय: सभी में उन्हें कमल पर आसीन दिखाया गया है। मिस्र देश की पुस्तकों और मंदिरों की चित्रकारी में भी कमल का प्रमुख स्थान है। कुछ विद्वानों की राय है कि कमल मिस्र से ही भारत में आया।

भारतीय कविता में कमल का निर्देश और वर्णन बड़ी प्रचुरता से पाया जाता है। सुंदर मुख की, हाथों की और पैरों की उपमा लाल कमल के फूल से और आँख की उपमा नील-कमल-दल से दी जाती है। कवियों का यह भी विश्वास है कि कमल सूर्योदय होने पर खिलता है और सूर्यास्त होने पर मुंद जाता है। कमल के तने (मृणाल, बिस) का वर्णन हंसों और हाथियों के प्रिय भोजन के रूप में किया गया है। कमल के पत्तों से बने हुए पंखे तथा मृणाखंड विरहिणी स्त्रियों की संतापशांति के साधन वर्णित किए गए हैं। कामशास्त्र में स्त्रियों का विभाजन चार वर्गों में किया गया है जिनमें सर्वश्रेष्ठ वर्ग पद्मिनी नाम से अभिहित है।[१]

उद्यान में कमल

यदि उद्यान में कमल लगाने की इच्छा हो तो सबसे अधिक संतोषजनक रीति यह है कि सीमेंट की बावली बनाई जाए। प्रबलित (reinforced) कंक्रीट, या प्रबलित ईटं और सीमेंट, से पेंदा बनाया जाए। इसमें लंबाई और चौड़ाई दोनों दिशा दिशा में लोहे की छड़ें रहें जिसमें इसे चटखने का डर न रहे। दीवारें भी प्रबलित बनाई जाएँ। तीन फुट गहरी बावली से काम चल जाएगा। लंबाई, चौड़ाई जितनी ही अधिक हों उतना ही अच्छा होगा। प्रत्येक पौधे को लगभग १०० वर्ग फुट स्थान चाहिए। इसलिए १०० वर्ग फुट से छोटी बावली बेकार है। बावली की पेंदी में पानी की निकासी के लिए छेद रहें तो अच्छा है जिसमें समय-समय पर बावली खाली करके साफ की जा सके। तब इस छेद से नीची भूमि तक पनाली भी चाहिए।

बावली की पेंदी में ९ से १२ इंच तक मिट्टी की तह बिछा दी जाए और थोड़ा बहुत दिया जाए। इस मिट्टी में सड़े गोबर की खाद मिली हो। मिट्टी के ऊपर एक इंच मोटी बालू डाल दी जाए। यदि बावली बड़ी हो तो पेंदी पर सर्वत्र मिट्टी डालने के बदले १२ इंच गहरे लकड़ी के बड़े-बड़े बक्सों का प्रयेग किया जा सकता है। तब केवल बक्सों में मिट्टी डालना पर्याप्त होगा। इससे लाभ यह होता है कि सूखी पत्ती दूर करने, या फूल तोड़ने के लिए, जब किसी को बावली में घुसना पड़ता है तब पानी गंदा नहीं होता और इसलिए पत्तियों पर मिट्टी नहीं चढ़ने पाती। कमल के बीज को पेंदी की मिट्टी में, मिट्टी के पृष्ठ से दो तीन इंच नीचे, दबा देना चाहिए। बसंत ऋतु के आरंभ में ऐसा करना अच्छा होगा। कहीं से उगता पौधा जड़ सहित ले लिया जाए तो और अच्छा। बावली सदा स्वच्छ जल से भरी रहे।

नई बनी बावली को कई बार पानी से भरकर और प्रत्येक बार कुछ दिनों के बाद खाली करके स्वच्छ कर देना अच्छा है, क्योंकि आरंभ में पानी में कुछ चूना उतर आता है जो पौंधों के लिए हानिकारक होता है। पेंदी की मिट्टी भी चार, छह महीने पहले से डाल दी जाए और पानी भर दिया जाए। पानी पले हरा, फिर स्वच्छ हो जाएगा। बावली में नदी का, अथवा वर्षा का, या मीठे कुएँ का जल भरा जाए। शहरों के बंबे के जल में बहुधा क्लोरीन इतनी मात्रा में रहती है कि पौधे उसमें पनपते नहीं। बावली ऐसे स्थान में रहनी चाहिए कि उसपर बराबर धूप पड़ सके। छाँह में कमल के पौधे स्वस्थ नहीं रहते।[२]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लेखक- मोहम्मद सैयदौद्दीन
  2. लेखक- भगवानदास वर्मा