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*कृतवर्मा यदुवंश के अंतर्गत भोजवंशीय हृदिक का पुत्र और वृष्णिवंश के सात सेनानायकों में एक।  
*कृतवर्मा यदुवंश के अंतर्गत भोजवंशीय हृदिक का पुत्र और वृष्णिवंश के सात सेनानायकों में एक।  
*महाभारत युद्ध में इसने एक अक्षौहिणी सेना के साथ दुर्योधन की सहायता की थी।  
*महाभारत युद्ध में इसने एक अक्षौहिणी सेना के साथ दुर्योधन की सहायता की थी।  
*यह कौरव पक्ष का अतिरथी वीर था (मा. भा., उद्यो., १३०-१०-११)।
*यह कौरव पक्ष का अतिरथी वीर था। <ref>मा. भा., उद्यो., १३०-१०-११</ref>
*महाभारत के युद्ध में इसने अपने पराक्रम का अनेक बार प्रदर्शन किया; अनेक बार पांडव सेना को युद्धविमुख किया तथा भीमसेन, युधिष्ठिर, धृष्टद्युम्न, उत्तमौजा आदि वीरों को पराजित किया। *द्वैपायन सरोवर पर जाकर इसी ने दुर्योधन को युद्ध के लिए उत्साहित किया था।  
*महाभारत के युद्ध में इसने अपने पराक्रम का अनेक बार प्रदर्शन किया; अनेक बार पांडव सेना को युद्धविमुख किया तथा भीमसेन, युधिष्ठिर, धृष्टद्युम्न, उत्तमौजा आदि वीरों को पराजित किया। *द्वैपायन सरोवर पर जाकर इसी ने दुर्योधन को युद्ध के लिए उत्साहित किया था।  
*निशाकाल के सौप्तिक युद्ध में इने अश्वत्थामा का साथ दिया तथा शिविर से भागे हुए योद्धाओं का वध किया (सौप्तिक पर्व ५-१०६-१०७), और पांडवों के शिविर में आग लगाई।  
*निशाकाल के सौप्तिक युद्ध में इने अश्वत्थामा का साथ दिया तथा शिविर से भागे हुए योद्धाओं का वध किया <ref>सौप्तिक पर्व ५-१०६-१०७</ref>, और पांडवों के शिविर में आग लगाई।  
*मौसल युद्ध में सात्यकि ने इसका वध किया।  
*मौसल युद्ध में सात्यकि ने इसका वध किया।  
*महाभारत के अनुसार मृत्यु के पश्चात्‌ स्वर्ग जाने पर इसका प्रवेश मरुद्गणों में हो गया।  
*महाभारत के अनुसार मृत्यु के पश्चात्‌ स्वर्ग जाने पर इसका प्रवेश मरुद्गणों में हो गया।  

१०:५७, २१ सितम्बर २०११ का अवतरण

  • कृतवर्मा यदुवंश के अंतर्गत भोजवंशीय हृदिक का पुत्र और वृष्णिवंश के सात सेनानायकों में एक।
  • महाभारत युद्ध में इसने एक अक्षौहिणी सेना के साथ दुर्योधन की सहायता की थी।
  • यह कौरव पक्ष का अतिरथी वीर था। [१]
  • महाभारत के युद्ध में इसने अपने पराक्रम का अनेक बार प्रदर्शन किया; अनेक बार पांडव सेना को युद्धविमुख किया तथा भीमसेन, युधिष्ठिर, धृष्टद्युम्न, उत्तमौजा आदि वीरों को पराजित किया। *द्वैपायन सरोवर पर जाकर इसी ने दुर्योधन को युद्ध के लिए उत्साहित किया था।
  • निशाकाल के सौप्तिक युद्ध में इने अश्वत्थामा का साथ दिया तथा शिविर से भागे हुए योद्धाओं का वध किया [२], और पांडवों के शिविर में आग लगाई।
  • मौसल युद्ध में सात्यकि ने इसका वध किया।
  • महाभारत के अनुसार मृत्यु के पश्चात्‌ स्वर्ग जाने पर इसका प्रवेश मरुद्गणों में हो गया।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मा. भा., उद्यो., १३०-१०-११
  2. सौप्तिक पर्व ५-१०६-१०७