गिरजाघर
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गिरजाघर जिस भवन में ईसाई मिलकर उपासना करते हैं उसे गिरजाघर अथवा चर्च कहते हैं। वह प्राय: आयाताकार होता है। लंबाई के एक छोर पर प्रवेशद्वार और दूसरे छोर पर वेदी होती है।
वेदी गिरजाघर का प्रधान अंग है। वह पत्थर की मेज होती है जिस पर ईसाई चढ़ावा चढ़ाया जाता है। वेदी पर बीच में क्रूसमूर्ति और उसके अगल बगल बत्तीदान रहते हैं। वेदी के मध्य में प्राय: एक पात्र (टेबनेंक्ल) होता है जिसमें प्रसाद रखा रहता है। प्रसाद के आदर में वेदी के पास अखंड दीप जलता है।
वेदी से कुछ दूरी पर बने एक कठघरे द्वारा गिरजाघर दो भागों में विभक्त होता है। वेदी के आसपास का भाग गर्भगृह (सैंक्चुअरी) कहलाता है। जनसाधारण उपासना के समय कठघरे के पास जाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। गर्भगृह में पुरोहित वर्ग के लिए आसन होते हैं और मंदिर के इस भाग से लगा हुआ एक वस्त्रालय (सैक्रिस्ती) होती है, जिसमें पूजा के कपड़े, पुस्तकें आदि रखी जाती हैं।
गिरजाघर में अनिवार्य रूप से कठघरे के पास प्रवचन मंच होता है और प्रवेशद्वार के निकट बपतिस्मा कक्ष जिसमें एक कुंड बना होता है। वहाँ बच्चों तथा दीक्षार्थियों को बपतिस्मा (दीक्षास्नान) दिया जाता है। प्रवेशद्वार के ऊपर अथवा पार्श्व भाग में एक छज्जे पर वाद्यराज (आर्गन) रहता है। उपासना के समय गायक मंडली वहाँ एकत्र हो जाती है। गिरजाघर के घंटे एक बुर्ज में लटकाए जाते हैं।
अधिकांश गिरजाघरों में पार्श्वभागों में कई और वेदियाँ होती हैं। काथलिक गिरजों में मूर्तियाँ तथा पाप स्वीकार करने के लिए पीठिकाएँ (कन्फेशनल्स) भी रखी रहती हैं और प्रवेशद्वार के पास आशिष् का जल रखा जाता है, जिसमें उँगलियाँ डुबोकर भक्तगण अपने उपर क्रूस का चिन्ह बनाते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ