गोआ
गोआ
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 13 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | अजित नारायण मेहरोत्रा |
गोआ (प्रदेश) भारत के मलाबार समुद्रतट पर स्थित यह राज्य ४०० वर्षों के उपरांत 1८ दिसंबर, सन् 1९६1 को पुर्तगाली शासन से मुक्त होकर पुन: भारत में सम्मिलित हुआ। इसकी उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की अधिकतम लंबाई ६3 मील और चौड़ाई ४० मील है। इसका कुल क्षेत्रफल 1,3०० वर्ग मील है। उत्तर में तेराखुल नदी, पूर्व में पश्चिमीघाट पर्वत, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में मैसूर प्रदेश का उत्तर कन्नड़ा जिला इसकी सीमा बनाते हैं। गोआ नीची दलदली भूमि पर स्थित है। इसका एक भाग तेराखुल, मांडवी तथा जुआरी नदी का डेल्टा है जो इनके द्वारा लाए गए जलोढ़ से बना है। इसका पूर्वी भाग पहाड़ी है जो ४,००० फुट तक ऊँचा है। पूर्वी सीमारेखा पश्चिमीघाट के पहाड़ों की चोटियाँ हैं। सोनसागर पहाड़ की ऊँचाई ४,11५ फुट है। जुआरी और मांडवी यहाँ की दो नदियाँ हैं जो संपूर्ण द्वीप को चारों ओर से घेरे हुए हैं। यह द्वीप त्रिभुजाकार है। इसका शीर्षक अंतरीप कहलाता है। शीर्ष भूभाग पहाड़ी होने के कारण गोआ के बंदरगाह को दो लंगरगाहों- उत्तर में मांडवी के मुहाने पर अगोडा या अगुडा और दक्षिण में जुआरी के मुहाने पर मारमागाओ (Marmagao) में विभक्त कर देता है।
यहाँ की जलवायु वर्ष भर नम और गरम रहती है। जनवरी का औसत ताप 1८° सें. है। वर्षा ऋतु अप्रैल से सितंबर तक रहती है और अधिकतम वर्षा 1००¢ ¢ तक हो सकती है, किंतु जाड़े में वर्षा नहीं होती। यहाँ उष्ण कटिबंधी वर्षावाली वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। लगभग एक तिहाई भूभाग में, धान, बाजरा, कोदो, सावाँ, कालीमिर्च, सुपारी, काजू, विभिन्न किस्म के मसाले, फल, तथा नारियल उपजाए जाते हैं। यहाँ मत्स्योद्योग भी होता है। लोहा और मैंगनीज यहाँ उपलब्ध हैं। मैंगनीज की खानें मरमागाओ के सन्निकट हैं किंतु खनिकर्म बहुत कम होता है। समुद्री जल से नमक भी तैयार किया जाता है। साधारणतया प्रदेश का बड़ा भाग आर्थिक रूप से अविकसित एवं पिछड़ा हुआ है। यहाँ से मसाले, नारियल, मछली, फल और नमक का निर्यात होता है।
रेलमार्ग द्वारा गोआ भारत से मिला है। यहाँ कुल तीन रेलमार्ग हैं, एक मध्य गोआ में, दूसरा पालघाट तथा तीसरा गोआ के उत्तर में। मरमागाओ जानेवाला रेलमार्ग भारत के मद्रास जानेवाले रेलमार्ग से मिलता है।
मांडवी एस्चुअरी पर स्थित पंजिम या नोवागोआ यहाँ की राजधानी है। इसके अतिरिक्त मापुका (Mapuca), मारगाओ तथा गोआविल्हा या पुराना गोआ अन्य नगर हैं। यहाँ गाँवों की संख्या ४०० से अधिक है और अधिकांश जनसंख्या इन्हीं गाँवों में रहती है। यहाँ के अधिकांश निवासी कोंकणी भाषाभाषी भारतीय हैं। पुर्तगालियों द्वारा 1६वीं शताब्दी के मध्य के पूर्व विजित क्षेत्रों की जनता रोमन कैथोलिक और बाद के विजित क्षेत्रों की जनता हिंदू है। पुर्तगाली और अरब मिश्रित रक्त के भी कुछ लोगों की यहाँ आबादी है।
गोआ को पुर्तगाल से मुक्त कराने के बाद भारत सरकार इसके विकास का प्रयास कर रही है। उसका शासन पृथक् राज्य के रूप में चल रहा है। गोआ ऐतिहासिक नगर रहा है। पुर्तगालियों के शासन से पूर्व पुराना गोआ 1५1० ई. तक बीजापुर के सुलतान के अधीन था। इसके पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर 132० ई. तक यहाँ कदंब राजाओं का शासन रहा। यहाँ की अधिकांश ईमारतें गिर्जाघर हैं। अरब भूगोलवेत्ताओं ने इसे सिंदावुर या सांदाबुर नाम से अभिहित किया है। हिंदू पुराणों में इसका वर्णन गोवे, गोमात तथा गोवापुरी नाम से आता है।