अपोलोनियस्
अपोलोनियस्
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 148 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भोलानाथ शर्मा/उपाध्याय। |
अपोलोनियस् (त्याना का)नव-पिथागोरस् संप्रदाय का दार्शनिक और सिद्ध पुरुष, जिसका जन्म ई. सन् के आरंभ से थोड़े ही पूर्व हुआ था। इसने तार्सस् और इगाए में अस्क्लेपियस् (यूनान के धन्वंतरि) के मंदिर में शिक्षा प्राप्त की थी और तत्पश्चात् निनेवे, बाबुल और भारत की यात्रा की। यह योगियों के वेश में रहता था। कोई इसको सिद्ध मानते थे, कोई ऐंद्रजालिक। सिद्ध के रूप में इसने ग्रीस, इटली और स्पेन की भी यात्रा की थी। नीरो और दोमीतियान् दोनों ने इसपर राजद्रोह का आरोप लगाया पर यह बच गया। इसने एफेसस् में एक विद्यालय स्थापित किया जहाँ यह शतायु होकर परलोक सिजारा। इसकी तुलना ईसामसीह तक के साथ की गई है।
अपोलोनियस् (रोद्स का) (ई.पू. तीसरी शताब्दी), संभवतया सिकंदरिया अथवा नौक्रातिस् का निवासी था पर चूंकि अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह रोद्स में बस गया था, वहीं का रहनेवाला कहा जाने लगा। इसने कल्लीमाकस् से शिक्षा प्राप्त की थी पर आगे चलकर दोनों में महान् कलह हो गया। यह ज़ेनोदोतस् और ऐरातोस्थेनेस् के मध्यवर्ती काल में सिकंदरिया के सुविख्यात पुस्तकालय का अध्यक्ष रहा। इसने गद्य और पद्य दोनों में बहुत कुछ लिखा था। पद्य में नगरों की स्थापना की पुस्तक तथा आर्गोनाउतिका अधिक प्रसिद्ध है। आर्गोनाउतिका में यासन् और मोदिया के प्रेम का वर्णन अभिराम हुआ है। इसकी उपमाएँ कालिदास की उपमाओं के समान विख्यात हैं। परवर्ती रोमन कवियों (विशेषकर वर्जिल) पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ