कुंठपाद
कुंठपाद
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 46-47 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | टी. जे. पार्कर ऐंड डब्ल्यू ए. हैसवेल, रिचर्ड स्वान लल |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
स्रोत | टी. जे. पार्कर ऐंड डब्ल्यू ए. हैसवेल : ए टेक्स्ट बुक ऑव जूलॉजी, खंड 2; रिचर्ड स्वान लल : ऑगैनिक इवोल्यूशन। |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भृगुनाथ प्रसाद |
कुंठपाद (ऐंब्लिपोडा, Amblypoda), खुरवाले स्तनपायी प्राणियों के दो लुप्त वर्गों, पैंटाडोंटा (Pantodonta) तथा डाइनोसेराटा (Dinocerata), का संयुक्त नाम। कुंठपाद स्तनपायी श्रेणी का एक प्राणिवर्ग था जो अब पृथ्वी से लुप्त हो चुका है। इसका अवशेष मात्र ही किन्हीं-किन्हीं देशों में पाया जाता है।
कुंठपाद के पैर में पाँच अँगुलियाँ होती थीं जिनके सिरे पर नाखून नहीं वरन् खुर होते थे। कुंठपाद इयोसिन काल (Eocane Period) में वर्तमान थे और हाथी से कम बड़े नहीं थे। इस श्रेणी के अवशेष इंग्लैंड में पाए जाते हैं, किंतु इसका अच्छा नमूना उत्तरी अमरिका में पाया गया है। यूरोप में इस श्रेणी का प्रतिनिधि कोरिफोडोन (Coryphodon) था।
पहले ऐसा विश्वास किया जाता था कि पैंटोडोंटा (Pantodonta) तथा डाइनोसेराटा (Dinocerata) दोनों ही वर्गों का आपस में घनिष्ठ संबंध था और एक वर्ग दूसरे वर्ग के उत्तरजीवकों से विकसित हुआ था; किंतु बाद में सन् 194० ई० के अमरीकी तथा एशियाई अन्वेषणों से यह ज्ञात हुआ कि अनेक समानताओं के बावजूद ये दोनों वर्ग सर्वथा भिन्न हैं और दोनों वर्ग लगभग एक ही समय में पृथक् पृथक् विकसित हुए। दोनों वर्ग स्तनपायी-प्राणी युग की प्राचीन अवस्था के उत्तरजीवक है। दोनों ही वर्गों का विकास विचित्र रूप से, तीव्र गति से हुआ; उनकी आकृति विशाल हो गई और वे समय से पूर्व विकास की चरम सीमा पर पहुँच गए। फलस्वरूप पैंटोडोंटा ऑलिगोसीन (Oligocene) युग में तथा डाइनोसेराटा इयोसिन युग में सर्वथा लुप्त हो गए। अन्य खुरवाले प्राणियों की भाँति दोनों वर्ग साधारणतया अतिप्राचीन कौंडिलार्थ्स (Conodylarths) से ही कदाचित् उत्पन्न हुए थे। इनकी निश्चित वंश परंपरा का ठीक-ठीक पता नहीं हैं।
पैंटाडोंटा पहले पैंटोलैब्डा (Pantolambda) वंश (Genus) के अंतर्गत परिगणित किए गए थे, जो उत्तरी अमरीका के मध्य पैलियोसीन (Palaeocene), युग में थे। इस वर्ग का अच्छा उदाहरण कोरिफोडॉन (Coryphodon) उत्तरी अमरीका तथा यूरोप के आरंभिक इयोसीन युग से प्राप्त होता है। उत्तरी अमरीका के पैलियोसीन युग का नमूना बैरिलैंबूडा (Barylambda) हैं। क्षुरीदन्त (कोरिफोडॉनCoryphodon) गाय या भालू के माप तक विकसित हो चुका था, किंतु इसका डील-डौल दूसरे से भारी था। इसका सिर बड़ा तथा शिखर समतल था और दरियाई घोड़े (हिपोपॉटामस Hippopotamus), की भाँति इसके उभरे चमकीले दाँत थे। नीचे के चर्वणक दाँतों की चंद्राकृति अद्भुत थी। मुड़े हुए कलँगीदार (किरीटीय Crowned), दाँतों की आवश्यकता तथा उपयोगिता जलीय रसीले पौधे तथा पत्तियां खाने के लिए थी। बैरिलैंबडा का भी प्राय: यही आहार था, परंतु अपेक्षाकृत असंतुलित छोटा सिर तथा स्लाथ पशु के समान भारी पूँछ इसकी विशेषता थी।
डाइनोसेराटा अथवा यूइंटाथिरिस (Uintatheres) इयोसिन युगीय स्तनपायी प्राणियों में सबसे बड़े थे और अनेक प्रकार से उनका विशिष्ट स्थान था। पैलिओसीन (Palaeocene), युग के उत्तरार्ध में, उत्तरी अमरीका तथा मंगोलिया में ये पशु सींग रहित तथा शाकाहारी रूप में सूअर के समान मापवाले प्रथम उत्पन्न हुए। परंतु जब इयोसीन युग आया तब इनके उत्तरजीवक, जहाँ तक ज्ञात हो सका हैं, उत्तरी अमरीका तथा मंगोलिया एक ही सीमित रह गए। वे इतने विशाल हो गए जैसे अफ्रीकी गैंडा। इनके सिर के ऊपर दो तीन हड्डीदार सींग के समान गाँठे भी उभर आईं। इनके ऊपरी श्वदंत (Canine), चीतों के भाले जैसे दाँतों के समान, छुरे जैसे थे, यद्यपि यूइंटाथिरिस निश्चित रूप से शाकाहारी थे। शरीर स्थूल होने के कारण इनके पैर भी हाथी की भाँति भारी हो गए और संतुलन बनाए रखने के लिए पैरों में पाँच खुरदार लचीली गद्दियाँ बन गईं। जिस गति से शरीर के अन्य अंगों का विकास हुआ उसी गति से इनके मस्तिष्क का विकास नहीं हुआ और विशाल शिरसंपुट (Cranium) करोटि (Skull) में अपेक्षाकृत छोटा ही रह गया। इनके चर्णवक्र दाँत भी अपेक्षाकृत साधारण रचना के तथा छोटे रह गए जिससे ऐसे स्थूलकाय प्राणी को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता था। इनके शीघ्र ही लुप्त हो जाने के कारणों में संभवत: एक कारण यह भी था कि इनके विकास में सामंजस्य नहीं था।
टीका टिप्पणी और संदर्भ