हरिहरक्षेत्र
हरिहरक्षेत्र
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 12 |
पृष्ठ संख्या | 304 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | कमलापति त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
हरिहरक्षेत्र बिहार की राजधानी पटना से तीन मील उत्तर में गंगा और गंडक के संगम पर स्थित सोनपुर नामक कस्बे को ही प्राचीन काल में हरिहरक्षेत्र कहते थे। ऋषियों और मुनियों ने इसे प्रयाग और गया से भी श्रेष्ठ तीर्थ माना है। ऐसा कहा जाता है कि इस संगम की धारा में स्नान करने से हजारों वर्ष के पाप कट जाते हैं। कर्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ एक विशाल मेला लगता है जो मवेशियों के लिए एशिया का सबसे बड़ा मेला समझा जाता है। यहाँ हाथी, घोड़े, गाय, बैल एवं चिड़ियों आदि के अतिरिक्त सभी प्रकार के आधुनिक सामान, कंबल दरियाँ, नाना प्रकार के खिलौने और लकड़ी के सामान बिकने को आते हैं (देखें सोनपुर)। यह मेला लगभग एक मास तक चलता है। इस मेले के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। इसी के पास कोनहरा घाट में पौराणिक कथा के अनुसार गज और ग्राह का वर्षों चलने वाला युद्ध हुआ था। बाद में भगवान् विष्णु की सहायता से गज की विजय हुई थी। एक अन्य किंवदंती के अनुसार जय और विजय दो भाई थे। जय शिव के तथा विजय विष्णु के भक्त थे। इन दोनों में झगड़ा हो गया तथा दोनों गज और ग्राह बन गए। बाद में दोनों में मित्रता हो गई वहाँ शिव और विष्णु दोनों के मंदिर साथ-साथ बने जिससे इसका नाम हरिहर क्षेत्र पड़ा। कुछ लोगों के अनुसार प्राचीन काल में यहाँ ऋषियों और साधुओं का एक विशाल सम्मेलन हुआ तथा शैव और वैष्णव के बीच गंभीर वाद विवाद खड़ा हो किंतु बाद में दोनों में सुलह हो गई और शिव तथा विष्णु दोनों की मूर्तियों की स्थापनाएक ही मंदिर में की गई, उसी को स्मृति में यहाँ कार्तिक में पूर्णिमा के अवसर पर मेला आयोजित किया जाता है।
इस मेले का आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से बड़ा महत्व है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ