त्रिनवतितमो (93) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासनपर्व: त्रिनवतितमो अध्याय: श्लोक 106-123 का हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार शुनःसख उस महाबलवती राक्षसी का वध करके त्रिदण्ड को पृथ्वी पर रख दिया और स्वयं भी वे वहीं घास से ढकी हुई भूमि पर बैठ गये। तदनन्तर वे सभी महर्षि इच्छानुसार कमल के फूल और मृणाल लेकर प्रसन्नतापूर्वक सरोवर से बाहर निकले।फिर बहुत परिश्रम करके उन्होंने अलग-अलग बोझ बांधे। इसके बाद उन्हें किनारे पर ही रखकर वे सरोव के जल से तर्पण करने लगे।थोड़ी देर बाद जब वे पुरुष प्रवर पानी से बाहर निकले तो उन्हें रखे हुए अपने वे मृणाल नहीं दिखाई पड़े। तब वे ऋषि एक-दूसरे से कहने लगे- अरे ! हम सब लोग भूख से व्याकुल थे और अब भोजन करना चाहते थे। ऐसे समय में किस निर्दयी ने हम पापियों के मृणाल चुरा लिये। शत्रुसूदन ! वे श्रेष्ठ ब्राह्माण आपस में ही एक-दूसरे पर संदेह करते हुए पूछ-ताछ करने लगे और अन्त मे बोले- ‘हम सब लोग मिलकर शपथ करें' शपथ की बात सुनकर सब-के-सब बोल उठे- ‘बहुत अच्छा’। फिर वे भूख से पीड़ित और परिश्रम से थके मांदे ब्राह्माण एक साथ ही शपथ खाने का तैयार हो गये। अत्रि बाले- जो मृणाल की चोरी करता हो उसे गाय को लात मारने, सूर्य की ओर मुंह करके पेशाब करने और अनध्याय के समय अध्ययन करने का पाप लगे। वसिष्ठ बोले- जिसने मृणाल चुराये हों उसे निसिद्व समय में वेद पढ़ने, कुत्ते लेकर शिकार खेलने, सन्यासी होकर मनमाना बर्ताव करने, शरणागता को मारने, अपनी कन्या बेचकर जीविका चलाने तथा किसान का धन छीन लेने का पाप लगे। कश्यप ने कहा- जिसने मृणालों की चोरी की हो उसको सब जगह सब तरह की बातें कहने, दूसरों की धरोहर हड़प लेने और झूठी गवाही देने का पाप लगे। जो मृणालों की चोरी करता हो उसे मांसाहार का पाप लगे। उसका दान व्यर्थ चला जाये तथा उसे दिन में स्त्री के साथ समागम करने का पाप लगे। भरद्वाज बोले- जिसने मृणाल चुराया हो उस निर्दयी की धर्म के परित्याग का दोष लगे। वह स्त्रियों, कुटुम्बीजनों तथा गौओं के साथ पापपूर्ण बर्ताव करने का दोषी हो और ब्राह्माण को वाद-विवाद में पराजित करने का पाप लगे। जो मृणाल की चोरी करता हो, उसे उपाध्याय (अध्यापक या गुरू) को नीचे बैठाकर उनसे ऋग्वेद और यजुर्वेद का अध्ययन करने और घास-फूस की आग में आहुति डालने का पाप लगे। जमदग्नि बोले- जिसने मृणालों का अपहरण किया हो, उसे पानी में मलत्याग करने का पाप लगे, गाय मारने का अथवा उसके साथ द्रोह करने का तथा ऋतुकाल आये बिना ही स्त्री के साथ समागम करने का पाप लगे। जिसने मृणाल चुराये हों उसे सबके साथ द्वेष करने का, स्त्री की कमाई पर जीविका चलाने का, भाई-बन्धुओं से दूर रहने का, सब से बैर करने का और एक- दूसरे के घर अतिथि होने का पाप लगे। गौतम बोले- जिसने मृणाल चुराये हों उसे वेदों को पढ़कर त्यागने का, तीनों अग्नियों का परित्याग करने का और सोमरस का विक्रय करने का पाप लगे। जिसने मृणालों की चोरी की हो उसे वही लोक मिले, जो एक ही कूप में पानी भरने वाले, गांव में निवास करने वाले और शूद्र की पत्नी से संसर्ग रखने वाले ब्राह्माण को मिलता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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