महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 146 श्लोक 1-18

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षट्चत्वारिंशदधिकशततम (146) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: षट्चत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन का अद्भुत पराक्रम और सिन्धुराज जयद्रथ का वध

संजय कहते हैं-राजन ! उस समय अर्जुन के द्वारा खींचे जाने वाले गाण्डीव धनुष की अत्यन्त भयंकर टंकार यमराज की सुस्पष्ट गर्जना तथा इन्द्र के वज्र की गड़गड़ाहट के समान जान पड़ती थी। उसे सुनकर आपकी सेना भय से उद्विग्न हो बड़ी घबराहट में पड़ गयी। उस समय उसकी दशा प्रलयकाल की आंधी से क्षोभ को प्राप्त एवं उत्ताल तरंगों से परिपूर्ण हुए उस महासागर के जल की सी हो गयी, जिसमें मछली और मगर आदि जलजन्तु छिप जाते हैं। उस रणक्षेत्र में कुन्तीकुमार अर्जुन एक साथ सम्पूर्ण दिशाओं में देखते और सब प्रकार के अस्त्रों का कौशल दिखाते हुए विचर रहे थे। महाराज ! उस समय अर्जुन की अद्भुत फुर्ती के कारण हम लोग यह नहीं देख पाते थे कि वे कब बाण निकालते हैं, कब उसे धनुष पर रखते हैं, कब धनुष को खींचते हैं और कब बाण छोड़ते हैं। नरेश्वर ! तदनन्तर महाबाहु अर्जुन ने कुपित हो कौरव सेना के समस्त सैनिकों को भयभीत करते हुए दुर्धर्ष इन्द्रास्त्र को प्रकट किया। इससे दिव्यास्त्र सम्बन्धी मन्त्रों द्वारा अभिमन्त्रित सैकड़ों तथा सहस्त्रों प्रज्वलित अग्नि मुख बाण प्रकट होने लगे । धनुष को कान तक खींचकर छोड़े गये अग्नि शिखा तथा सूर्यकिरणों के समान तेजस्वी बाणों से भरा हुआ आकाश उल्काओं से व्याप्त सा जान पड़ता था। उसकी ओर देखना कठिन हो रहा था। तदनन्तर कौरवों ने अस्त्र शस्त्रों की इतनी वर्षा की कि वहां अंधेरा छा गया। दूसरे कोई योद्धा उस अन्धकार को नष्ट करने का विचार भी मन में नहीं ला सकते थे; परंतु पाण्डुपुत्र अर्जुन ने बड़ी शीघ्रता सी करते हुए दिव्यास्त्र सम्बन्धी मन्त्रों द्वारा अभिमन्त्रित बाणों से पराक्रम पूर्वक उसे नष्ट कर दिया। ठीक उसी तरह, जैसे प्रातःकाल में सूर्य अपनी किरणों द्वारा रात्रि के अन्धकार को शीघ्र नष्ट कर देते हैं। तत्पश्चात् जैसे ग्रीष्मऋतु के शक्तिशाली सूर्य छोटे-छोटे गड्डों के पानी को शीघ्र ही सुखा देते हैं, उसी प्रकार सामर्थ्‍यशाली अर्जुन रूपी सूर्य ने अपनी बाणमयी प्रज्वलित किरणों द्वारा आपकी सेना रूपी जल को शीघ्र ही सोख लिया। इसके बाद दिव्यास्त्रों के ज्ञाता अर्जुन रूपी सूर्य की छिटकायी हुई बाण रूपी किरणों ने शत्रुओं की सेना को उसी प्रकार आप्लावित कर दिया, जैसे सूर्य की रश्मियां सारे जगत को व्याप्त कर लेती हैं। तदनन्तर अर्जुन के छोड़े हुए दूसरे प्रचण्ड तेजस्वी बाण वीर योद्धाओं के हृदय में प्रिय बन्धु की भांति शीघ्र ही प्रवेश करने लगे। समरांगण में अपने को शूरवीर मानने वाले आपके जो-जो योद्धा अर्जुन के सामने गये, वे जलती आग में पड़े हुए पतंगों के समान नष्ट हो गये। इस प्रकार कुन्तीकुमार अर्जुन शत्रुओं के जीवन और यश को धूल में मिलाते हुए मूर्तिमान मृत्यु के समान संग्रामभूमि में विचरण करने लगे। वे अपने बाणों से किन्हीं शत्रुओं के मुकुटमण्डित मस्तकों, किन्हीं के बाजूबंदविभूषित विशाल भुजाओं तथा किन्हीं के दो कुण्डलों से अलंकृत दोनों कानों को काट गिराते थे। पाण्डुकुमार अर्जुन ने हाथी सवारों की तोमरयुक्त, घुड़सवारों की प्रासयुक्त, पैदल सिपाहियों की ढालयुक्त, रथियों की धनुषयुक्त और सारथियों की चाबुक सहित भुजाओं को काट डाला। उद्दीप्त एवं उग्र बाण रूपी शिखाओं से युक्त तेजस्वी अर्जुन वहां चिनगारियों और लपटों से युक्त प्रज्वलित अग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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