महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-30

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पन्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

यमलोक तथा यहॉ के मार्गों का वर्णन,पापियों की नरकयातनाओं तथा कर्मानुसार विभिन्न योंनियों मे उनके उन्मका उल्लेख

महाभारत: अनुशासन पर्व: पन्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-30 का हिन्दी अनुवाद

उमा ने पूछा- भगवन्! सर्वलोकेष्वर! त्रिपुरनाषन! शंकर! यमदण्ड कैसे होते हैं? तथा यमराज के सेवक किस तरह के होते हैं? मृत प्राणी यमलोक को कैसे जाते है? यमराज का भवन कैसा है? तथा वे प्रजावर्ग को किस तरह दण्ड देते हैं? प्रभो! महादेव! मैं यह सब सुनना चाहती हूँ। श्रीमहेश्वर ने कहा- कल्याणि! देवि! तुम्हारे मन में जो-जो पूछने योग्य बातें हैं, उन सबका उत्तर सुनो। शुभे! दक्षिणदिशा में यमराज का विशाल भवन है। वह बहुत ही विचित्र, रमणीय एवं नाना प्रकार के भावों से युक्त है। पितरों, प्रेतों और यमदूतों से व्याप्त है। कर्मों के अधीन हुए बहुत-से प्राणियों के समुदाय उस यमलोक को भरे हुए हैं। वहाँ लोकहित में तत्पर रहने वाले यम पापियों को सदा दण्ड देते हुए निवास करते हैं। वे अपनी मायाशक्ति से ही सदा प्राणियों के शुभाशुभ कर्म को जानते हैं और माया द्वारा ही जहाँ-तहाँ से प्राणि-समुदाय का संहार कर लाते हैं। उनके मायामय पाश हैं, जिन्हें न देवता जानते हैं, न असुर। फिर मनुष्यों में कौन ऐसा है, जो उन यमदेव के महान् चरित्र को जान सके। इस प्रकार यमलोक में निवास करते हुए यमराज के दूत जिनके प्रारब्धकर्म क्षीण हो गये हैं, उन प्राणियों को पकड़कर उनके पास ले जाते हैं। जिस किसी निमित्त से वे प्राणियों को ले जाते हैं, वह निमित्त वे स्वयं बना लेते हैं। जगत् में कर्मानुसार उत्तम, मध्यम और अधम तीन प्रकार के प्राणी होते हैं। यथायोग्य उन सभी प्राणियों को लेकर वे यमलोक में पहुँचाते हैं। धार्मिक पुरूषों को उत्तम समझो। वे देवताओं के समान स्वर्ग के अधिकारी होते हैं। जो अपने कर्म के अनुसार मनुष्यों में जन्म लेते हैं, वे मध्यम माने गये हैं। जो नराधम पशु-पक्षियों की योनि तथा नरक में जाने वाले हैं, वे अधमकोटि के अन्तर्गत हैं। सभी मरे हुए प्राणियों के लिये तीन प्रकार के मार्ग देखे गये हैं- एक रमणीय, दूसरा निराबाध और तीसरा दुर्दर्ष जो रमणीय मार्ग है, वह ध्वजा-पाताकाओं से सुषोभित और फूलों की मालाओं से अलंकृत है। उसे झाड़-बुहारकर उसके ऊपर जल का छिड़काव किया गया होता है। वहाँ धूप की सुगन्ध छायी रहती है। उसका स्पर्ष चलने वालों के लिये सुखद और मनोहर होता है। निराबाध वह मार्ग है, जो लौकिक मार्गों के समान सुन्दर एवं प्रशस्त बनाया गया है। वहाँ किसी प्रकार की बाधा नहीं होती। जो तीसरा मार्ग है, वह देखने में भी दुःखद होने के कारण दुर्दर्ष कहलाता है। वह दुर्गन्धयुक्त एवं अन्धकार से आच्छन्न है। कंकड़-पत्थरों से व्याप्त अहौर कठोर जान पड़ता है। वहाँ कुत्ते और दाढ़ों वाले हिंसक जन्तु अधिक रहते हैं। कृमि और कीट सब ओर छाये रहते हैं। उस मार्ग से चलने वालों को वह अत्यन्त दुर्गम प्रतीत होता है। शुचिस्मिते! इस प्रकार तीन मार्गों द्वारा वे सदा यथासमय उत्तम, मध्यम और अधम पुरूषों को जिस प्रकार ले जाते हैं, वह मुझसे सुनो। उत्तम पुरूषों को अन्त के समय ले जाने के लिये जो यमदूत आते हैं, वे सुन्दर वस्त्राभूषणों से विभूषित होते हैं और उन पुरूषों को साथ ले रमणीय मार्ग द्वारा सुखपूर्वक ले जाते हैं। मध्यमकोटि के प्राणियों को मध्यम मार्ग के द्वारा योद्धा का वेष धारण किये हुये यमदूत अपने साथ ले जाते हैं तथा चाण्डला का वेश धारण करके अधमकोटि के प्राणियों को पकड़कर उन्हें डाँटते-फटकारते तथा पाषों द्वारा बाँधकर घसीटते हुए दुर्दर्ष नामक मार्ग से ले जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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