थ्योडोर गोल्डस्टकर

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:०२, १८ अगस्त २०११ का अवतरण (Text replace - "०" to "0")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
थ्योडोर गोल्डस्टकर
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 38
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भोला शंकर व्यास


थ्योडोर गोल्डस्टकर (1821-1872) इनका जन्म 18 जनवरी, 1821 ई. को कोनिग्सबर्ग के एक यहूदी जर्मन परिवार में हुआ था। गोल्डस्टकर के राजनीतिक विचार इतने अधिक उदार थे कि जर्मन शासन उन्हें संदेह की दृष्टि से देखता था। सन्‌ 1847 से 1850 तक इन्होंने बर्लिन में निवास किया, किंतु जर्मन शासन के विरोध के कारण इन्हें जर्मनी छोड़ना पड़ा। बाद को ये इंग्लैंड चले गए और वहाँ सन्‌ 1852 में लंदन के यूनिवर्सिटी कालेज में संस्कृत के प्राध्यापक (प्रोफेसर) हो गए। वहाँ रहकर अध्यापक एवं संस्कृतवेत्ता के रूप में इन्होंने पर्याप्त ख्यति प्राप्त की। लंदन की संस्कृत टेक्स्ट सोसायटी के संस्थापकों में गोल्डस्टकर प्रमुख थे। इनका देहांत लंदन में ही 6 मार्च, 1872 को हुआ था।

गोल्डस्टकर ने पाणिनीय व्याकरण को अपना प्रिय विषय बनाया तथा पाणिनि की अष्टाध्यायी की जर्मन व्याख्या प्रकाशित की। वे आज भी पाणिनि व्याकरण के सबसे बड़े यूरोपीय विद्वान्‌ माने जाते हैं। गोल्डस्टकर उन सभी पूर्वाग्रहों से रहित थे जो राजनीतिक कारणों से अधिकांश भारततत्ववेत्ता यूरोपीय लेखकों में पाए जाते हैं। ब्राह्मी लिपि के विकास के सबंध में गोल्डस्टकर के विचार अन्य यूरोपीय विचारकों से सर्वथा भिन्न हैं, और इसके लिये गोल्डस्टकर की पर्याप्त आलोचना की गई हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ