अहिरावण

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लेख सूचना
अहिरावण
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 320
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक डा० सद्गोपाल

अहिरावण / महिरावण रावण के पाताल निवासी दो मित्र जो रावण के कहने से सुबेल पर्वत की एक शिला पर राम और लक्ष्मण को सोते देख, वध करने के लिए शिलासहित उठाकर ले गए। हनुमान पीछा करते हुए निकुंभिला नगर पहुँचे जहाँ उन्हें उनका पुत्र मकरध्वज (स्नान के समय हनुमान का एक स्वेदबिंदु मछली द्वारा पी जाने से उसके गर्भ से उत्पन्न) मिला जिसने उन्हें बताया कि प्रात:काल कामाक्षीदेवी के मंदिर में राम और लक्ष्मण का वध होगा। जब राक्षस राम और लक्ष्मण को वधार्थ लेकर मंदिर पहुँचे तब हनुमान ने देवी के छद्मस्वर में कहा कि पूजा आदि मंदिर के झरोखे से बाहर से की जाए। राक्षसों ने वैसा ही किया तथा राम और लक्ष्मण को भी झरोखे से भीतर छोड़ दिया। इसके बाद तुमुल युद्ध हुआ किंतु अहिरावण अथवा महिरावण के रक्त से नए-नए अहिरावण अथवा महिरावण पैदा होने लगे। हनुमान को अहिरावण की पत्नी ने बताया कि वह नाग कन्या है तथा बलपूर्वक यहाँ लाई गई है। महिरावण की भी उस पर कुदृष्टि है। यदि राम उससे विवाह करें तो वह इन दोनों राक्षसों को नष्ट करने का उपाय बता सकती है। हनुमान ने उत्तर दिया कि यदि राम के बोझ से उसका पलंग न टूटा तो वह ब्याह कर लेंगे। नाग कन्या ने बताया कि एक बार कुछ लड़के भौंरों को पकड़कर काँटे चुभा रहे थे तब इन दोनों ने भौंरों को बचाया था। वे ही भ्रमर अमृतबिंदु से इन दोनों को जीवित रखते हैं, अत: पहले भौंरों को मार डालो। हनुमान ने बहुत भ्रमरों को मार डाला। एक भ्रमर जब शरणागत हुआ तो उससे हनुमान ने अहिपत्नी का पलंग अंदर से खोखला करवाया। तब तक राम के बाण से सब राक्षसों का वध हो चुका था। हनुमान से सब बात सुनकर राम नाग कन्या के आवास में गए तथा पलंग स्पर्श करते ही, पोला हो जाने के कारण टूट गया। हनुमान की चतुराई से राम को नागकन्या से विवाह नहीं करना पड़ा। उसने अग्नि में जलकर शरीर छोड़ा।


टीका टिप्पणी और संदर्भ