उन्नाब
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उन्नाब
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 109 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भगवानदास वर्मा |
उन्नाब का मराठी तथा उर्दू में भी यही नाम है। हिंदी में इसे बनबेर भी कहते हैं। संस्कृत में इसी सौबीर तथा लैटिन में जिजिफ़स सैटिवा कहते हैं।
यह पौध बेर की जाति का है और पश्चिम हिमालय प्रदेश, पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, अफगानिस्तान, बलोचिस्तान, ईरान इत्यादि में पाया जाता है। इसकी झाड़ी काँटेदार, पत्ते बेर के पत्तों से कुछ तथा नुकीले, फल छोटी बेर के बराबर और पकने पर लाल रंग के होते हैं। उत्तरी अफगानिस्तान का उन्नाव सर्वोत्कृष्ट होता है।
इस औषधि का उपयोग विशेषकर हकीम करते हैं। इनके मतानुसार इसके पत्ते विरेचक होते हैं तथा खाज, गले के भीतर के रोग और पुराने घावों में उपयोगी हैं। परंतु औषधि के काम में इसका फल ही मुख्यत: प्रयुक्त होता है जो स्वाद में खटमीठा होता है। यह कफ तथा मूत्रनिस्सारक, रक्तशोधन तथा रक्तवर्धक कहा गया है। और खाँसी, कफ और वायु से उत्पन्न ज्वर, गले के रोग, यकृत और तिल्ली की वृद्धि में विशेष लाभदायक माना गया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ