एलिजा
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एलिजा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 250 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | विशंभरनाथ पांडेय |
एलिजा तिस्बेह (गिलीद) निवासी और यहूदियों के प्रमुख पैगंबरों में से एक। समय 876-853 ई.पू.। एलिजा इसराइल के राजा अहाब का समकालीन था। सेमुअल और दाऊद के बाद यहूदियों के महान् पैगंबरों में एलिजा की गणना की जाती है। यहूदियों में दो मुख्य फिरके थे : (1) यहूदी, और (2) बनी इसराइल। दोनों में आरंभ से प्रतिस्पर्धा चली आती थी। इन दोनों जातियों के अनेक छोटे-छोटे राजा आए दिन एक दूसरे के साथ लड़ा करते थे। सबसे पहले दाऊद और उसके बाद दाऊद के बेटे सुलेमान ने फिलिस्तीन में यहूदियों का एकछत्र राज्य स्थापित किया, किंतु सुलेमान की मृत्यु के पूर्व से ही यहूदी और इसराइल के पारस्परिक युद्ध शुरू हो गए। नवीं सदी ई.पू. में इसराइल का शासन अहाब के हाथों में आया। अहाब की पत्नी ने बाल देवता की पूजा प्रचलित की। बाल की पूजा के विरुद्ध पैंगंबर एलिजा ने विद्रोह की आवाज उठाई। एलिजा ने यहूदी जनता का आह्वान करते हुए कहा कि यह्वे के अतिरिक्त किसी अन्य देवी देवता की पूजा करना गुनाह है। इस विद्रोह के परिणामस्वरूप अहाब, उसकी विदेशी रानी और उनके सब बच्चों को मार डाला गया। बाल के मंदिर गिराकर नष्ट कर दिए गए।
समय समय पर एलिजा ने अहाब की और विदेशी देवी देवताओं की पूजा करनेवाले यहूदियो की जो भर्त्सना की है और उन्हें जो अभिशाप दिए हैं वे बाइबिल की पुरानी पोथी में दर्ज हैं। एलिजा एकमात्र यह्वे की पूजा का समर्थक था और राजनीतिक उदारता के नाम पर भी किसी प्रकार के विदेशी देवी देवताओं की पूजा करना यहूदियों के लिए सबसे बड़ा गुनाह मानता था।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.–विश्वंभरनाथ पांडे : यहूदी धर्म और सामी संस्कृति (1954)।