शुक्राचार्य

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १०:०५, ८ जून २०१८ का अवतरण (असुराचार्य का नाम बदलकर शुक्राचार्य कर दिया गया है)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
शुक्राचार्य
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 310
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक डा० सद्गोपाल

असुराचार्य भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र जो शुक्राचार्य के नाम से अधिक ख्यात हें। इनका जन्म का नाम शुक्र उशनस है। पुराणों के अनुसार याह दैतयों के गुरू तथा पुरोहित थे। कहते हैं, भगवान के वामनावतार में तीन पग भूमि प्राप्त करने के समय, यह राजा बलि की झारी के मुख में जाकर बैठ गए और बलि द्वारा दर्भाग्र से झारी साफ करने की क्रिया में इनकी एक आँख फूट गई। इसीलिए यह 'एकाक्ष' भी कहे जाते थे। आरंभ में इन्होंने अंगिरस ऋषि का शिष्यत्व ग्रहण किया किंतु जब वह अपने पुत्र के प्रति पक्षपात दिखाने लगे तब इन्होंने शंकर की आराधना कर मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की जिसके बल पर देवासुर संग्राम में असुर अनेक बार जीते। इन्होंने 1,000 अध्यायोंवाले 'बार्हस्पत्य शास्त्र' की रचना की। गो और जयंती नाम की इनकी दो पत्नियाँ थीं। असुरों के आचार्य होने के कारण ही इन्हें असुराचार्य कहते हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ