क़यामत
क़यामत
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 413 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | आस्कर वेरकूसे |
- कयामत ईसाइयों का विश्वास है कि कयामत के दिन अर्थात् काल के अंत में ईश्वर सभी मनुष्यों का न्याय करेगा (अरबी शब्द 'कयामत' इब्रानी धातु 'कूम' से संबंध रखता है; 'कूम' का अर्थ है खड़ा होना, न्याय करना)।
- बाइबिल के प्रारंभ से ही इसका बारंबार उल्लेख मिलता है कि ईश्वर मनुष्यों को पाप के कारण दंड देता है।
- यहूदी जाति ईश्वर के दिन की प्रतीक्षा करती थी-उस दिन ईश्वर भलों को पुरस्कार और बुरों को दंड देकर पृथ्वी पर अपना राज्य स्थापित करने वाला था।
- अपेक्षाकृत अर्वाचीन काल में ईश्वर के दिन के अवसर पर मृतकों के पुनरुत्थान का उल्लेख मिलता है।
- दानियाल नबी के ग्रंथ[१] में पहले पहल कहा गया है कि काल के अंत में कुछ लोग अनंत जीवन के लिए और कुछ लोग अनंत दंड पाने के लिए जी उठेंगे किंतु काल के अंत में सभी मनुष्यों का पुनरुत्थान स्पष्ट रूप से बाइबिल के पूर्वार्ध में प्रतिपादित नहीं किया गया है।
- फिर भी ईसा के जीवनकाल में पुनरुत्थान पर विश्वास व्यापक रूप से यहूदियों में प्रचलित था।
- बाइबिल के उत्तरार्ध में ईश्वर के दिन के विषय में माना गया है कि काल के अंत में (कयामत के दिन) सभी मनुष्य पुनरुज्जीवित होंगे तथा ईसा न्यायकर्ता के रूप में प्रकट होकर भलों को स्वर्ग का पुरस्कार तथा बुरों को नरक का दंड प्रदान करेंगे।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (दे. १२, २)