कर्नल टॉड
कर्नल टॉड
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 143 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | दशरथ शर्मा |
कर्नल टॉड जन्म इंस्लिग्टन में २० मार्च, सन् १७८२ को हुआ। इनके पिता और माता दोनों ईस्ट इंडिया कंपनी की सिविल सर्विस में थे। इसलिए इन्हें आसानी से सेना के उच्च उम्मेदवारों में स्थान मिल गया। कलकता पहुँचने पर दूसरे नंबर की यूरोपियन रेजिमेंट में इनकी नियुक्ति हुई। कुछ महीने बाद १४ नबंर की देशी सेना में इन्हें लेफ्टिनेंट का पद मिला। सन् १८०७ में १५ नंबर की देशी सेना में इनका तबादला हुआ।
सन् १८०५ में अपने मित्र ग्रीम मर्सन के साथ रहनेवाली सेना के अधिकारी बनकर ये दौलतराव सिंधिया के कैंप में पहुँचे। मर्सर उस समय सरकारी एजेंट थे। रास्ते के स्थानों की पैमाइश करते हुए टॉड मर्सर के साथ आगरा से उदयपुर पहुँचे। यह निरीक्षण और पैमाइश का काम उसके बाद लगातार चलता रहा। सन् १८१०-११ में पैमाइश करनेवालों को टॉड ने दो दलों में बाँट दिया, और जहाँ वे अपने आप न जा सके वहाँ उन्हें भेजा। टॉड के इस सहायकों में से विशेष रूप से शेख अब्दुल बरकत और मदारीलाल के नाम उल्लेख्य हैं।
लार्ड हस्टिंग्स ने पिंडारियों के विरुद्ध जब युद्ध शुरू किया तब अंग्रेजी सेनानायकों को टॉड से अनेक प्रकार से सहायता मिली। टॉड ने युद्धक्षेत्र का नक्शा बनाकर अंग्रजी सैन्य-संचालन-विभाग का दिया। सरकार ने इसकी कई नकलें तैयार करवाई। टॉड द्वारा प्रस्तुत मालवे का नक्शा भी युद्ध में बहुत काम आया। संशोधित रूप में टॉड ने यह नक्शा अपने 'राजस्थान' की पहली जिल्द के आरंभ में लगाया।
सन् १८१३ में टॉड को कप्तान का पद मिला। रेजिडेंट सर रिचर्ड स्ट्रेची ने इन्हें अपना द्वितीय असिस्टैंट नियुक्त किया। सन् १८१८ से १८२२ तक टॉड पश्चिमी राजपूताने के पोलिटिकल एजेंट रहे।
उस समय राजस्थान की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा अत्यंत दयनीय थी। मराठों के उत्पात से यह प्रांत बहुत कुछ उजड़ चुका था। जहाँ कहीं मराठों का पड़ाव पड़ता, कोसों तक भूमि बर्वाद हो जाती। बड़े बड़े नगर प्राय: चौबीस घंटों में नष्ट हो जाते। जले हुए गाँव और नष्ट भ्रष्ट खेतियाँ मराठों के प्रयाण का मार्ग बतलातीं। इस स्थिति को सुधारने के लिए अंगरेजी सरकार ने राजस्थान के राज्यों से संधियाँ करनी शुरू कीं; किंतु इससे भी अधिक बुधिमानी का कार्य टॉड को राजस्थान में सरकारी प्रतिनिधि नियुक्त करना था। मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह ने इसकी सलाह से अपने राज्य में अनेक सुधार किए। सन् १८१९ में जोधपुर जाते समय टॉड ने कई अभिलेखों और मुद्राओं का संग्रह किया जो इतिहास के लिये अत्यंत उपयोगी हैं। जोधपुर के महाराज ने भी कर्नल टॉड को राजपूत इतिहास की अनेक पुस्तकें दीं।
सन् १८२० में बूँदी पहुचँकर टॉड ने बूँदी के राजकार्य की व्यवस्था की। रावराजा की माता ने राखी भेजकर टॉड को अपना भाई बनाया। कोटे में महाराव किशोरसिंह और उनके प्रधान जालिमसिंह की अनबन को टॉड ने किसी तरह शांत किया, किंतु इस विवाद में टॉड ने जालिमिंह का अनुचित पक्ष लिया। इसी बीच में घूमकर अनेक ऐतिहासिक स्थानों और अभिलेखों की भी खोज टॉड ने की, जिनमें सं० १२२६ का बिजोल्या का शिलालेख विशेष रूप से उल्लेख्य है।
२४ वर्ष तक भारत में रहने के बाद टॉड इंग्लैड वापस गए। सन् १८२४ में इन्हें मेजर का और १८२६ में लेफ्टिनेंट कर्नल का पद मिला। 'राजस्थान' का प्रकाशन १८२९ से १८३२ के बीच में हुआ। १८२६ में टॉड ने विवाह किया और १८३५ में इनकी मृत्यु हुई। टॉड का 'राजस्थान' उनके राजस्थान की संस्कृति और संस्कृति के अनुराग का सबसे अच्छा स्मारक है। राजस्थान के इतिहास का मार्ग सर्वप्रथम प्रशस्त बनाने का श्रेय टॉड को है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ