अंतरतारकीय गैस

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १३:३२, १२ फ़रवरी २०१५ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

अंतरतारकीय गैस तारों के बीच रिक्त स्थानों में उपस्थित रहती है। यह गैस धूलकणों के साथ पाई जाती है।

  • गैस के अणु तारों के प्रकाश से विशेष रंगों को सोख लेते हैं और इस प्रकार उनके कारण तारों के वर्णपटों में काली धारियाँ बन जाती हैं।
  • ऐसी काली धारियाँ सामान्यत: तारे के निजी प्रकाश से भी बन सकती हैं।
  • काली रेखाएँ अंतरतारकीय धूलि से ही बनी हैं, इसका प्रमाण उन युग्मतारों से मिलता है, जो एक-दूसरे के चारों ओर नाचते रहते हैं।
  • इन तारों में से जब एक हमारी ओर आता रहता है, तब दूसरा हमसे दूर जाता रहता है।
  • परिणाम यह होता है कि डॉपलर नियम के अनुसार वर्णपट में एक तारे से आई प्रकाश की काली रेखाएँ कुछ दाहिने हट जाती हैं।
  • इस प्रकार दूसरे तारे के प्रकाश से बनी रेखाएँ दोहरी हो जाती हैं, परंतु अंतरतारकीय गैसों से उत्पन्न काली रेखाएँ इकहरी होती हैं; इसलिए वे तीक्ष्ण रह जाती हैं।
  • अंतरतारकीय गैस में कैल्सियम, पोटैशियम, सोडियम, टाइटेनियम और लोहे के अस्तित्व का परा इन्हीं तीक्ष्ण-रेखाओं के आधार पर चला है।
  • इन मौलिक धातु तत्वों के अतिरिक्त ऑक्सीजन और कार्बन; हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन के विशेष यौगिकों का पता लगा है।
  • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अंतरतारकीय गैस में प्राय वे सभी तत्व होंगे, जो पृथ्वी या सूर्य में हैं। (नि. सिं.)

टीका टिप्पणी और संदर्भ