शंकु

अद्‌भुत भारत की खोज
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  • शंकु, या नोमन (Gnomon), दिन में समय ज्ञात करने के सरल प्राचीन उपकरण था। इसमें मुख्यत: फर्श, या किसी क्षैतिज समतल, पर एक खड़ा छड़ होता था, जिसकी छाया की स्थिति दिन का समय बताती थी।
  • २,००० ई. पू. में ही बैबिलोनिया में इसका प्रयोग होता था और हेराडोटस (Herodotus) के अनुसार अनैक्सिमैंडर (Anaximander) ने लगभग ६०० ई. पू. यूनान में इसका प्रचार किया।
  • खड़े छड़ की छाया की लंबाई, दिशा तथा छाया के अग्र द्वारा अनुरेखित रेखा से रविमार्ग के तिर्यक्ता, अयनांत की तिथि (अत: सौर वर्ष) और याम्योत्तर का पता लगाना संभव होता था।
  • कभी कभी शंकु का खड़ा छड़ किसी गोलार्ध के अवतल पृष्ठ के केंद्र में बिठाया जाता है। एक रूपांतरण में, यह एक ऊँचा गुंबद था, जिसके ऊपरी भाग में छेद बना था, जिससे होकर सूर्य का प्रकाश फर्श पर बिंदु के रूप में पड़ता था।
  • रोम की प्राचीन काल की कुछ धूपघड़ियों में, जिन्हें चक्रार्ध (hemicycle) कहते थे, यह एक क्षैतिज शलाका (style) के रूप में था, जो पट्ट (dial) के सर्वोच्च वक्र कोर के केंद्र पर आबद्ध होता था। पार्थिव अक्ष के समांतर आबद्ध धूपघड़ी की तिरछी शलाका को भी शंकु कहते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ