सिकंदर
सिकंदर मकदूनिया (मेसीडन) प्रारंभ में यद्यपि एक पिछड़ा राज्य था किंतु सिकंदर के कारण वह इतिहास में अमर हो गया। ३५९ ई. पू. में फिलिप यहाँ का राजा हुआ। फिलिप की मृत्यु के बाद उसका बेटा सिकंदर ३३६ ई. पू. में मकदूनिया का राजा हुआ। उस समय उसकी अवस्था २० वर्ष की थी। वह उत्साह से भरा युवक था। उसकी शिक्षा दीक्षा प्रसिद्ध विद्वान् अरस्तू द्वारा हुई थी।
सिकंदर महान् विजेता बनना चाहता था। भाग्य से उसको पिता की सुसंगठित सेना और राज्य प्राप्त हुए थे। अपने पिता के समय में एथेन्स और थीब्स के विरुद्ध युद्ध में वह अश्वारोही दल का नायक रह चुका था। गद्दी पर बैठते ही उसने राज्य में विद्रोही शक्ति को कुचल डाला।
३३४ ई. पू. में सिकंदर लगभग साढ़े तीन हजार कुशल सैनिकों को लेकर विश्वविजय के लिए निकल पड़ा। 11 वर्षों में उसने अद्भुत सफलता प्राप्त की और साम्राज्य की सीमाओं को चारों ओर दूर-दूर तक फैलाया। एशिया माइनर जीतकर भूमध्यसागर के तटवर्ती देशों को रौंदता हुआ फिनियों की शत्रुता का बदला लेता वह एकाएक मिस्र की नील नदी की घाटी में जा पहुँचा और मिस्र को जीतकर उसने वहाँ अपने नाम पर सिकंदरिया नगर बसाया। फिर वह एशिया की ओर लौटा। एशिया में सर्वप्रथम उसकी मुठभेड़ फारस के सम्राट् दारा से हुई। दारा ने उसकी शक्ति को देखकर संधि को प्रस्ताव रखा किंतु सिकंदर ने अपनी शक्ति को कायम रखने के लिए इसे स्वीकार नहीं किया। सिकंदर सीरिया होता हुआ बेबीलोन पहुँचा और उसको जीतकर और आगे बढ़ा। दजला के तट पर आरावेला के मैदान में दारा तृतीय और सिकंदर की सेनाएँ आमने-सामने डट गईं। सिकंदर की सेनाओं ने उसे रौंद दिया। दारा की सेना बहुत अधिक थी। सिकंदर ने दारा का पीछा किया किंतु दारा को उसकी प्रजा ने ही मारा डाला। कास्पियन सागर तट से होकर सिकंदर खुरासान और पार्थिया को रौंदता हुआ तथा हिंदूकुश को पार करता हुआ भारत की सीमा पर पहुँचा। मार्ग बैक्ट्रिया के राजकुमार के विद्रोह को दबाता हुआ वह भारत विजय का स्वप्न शीघ्र ही पूरा कर लेना चाहता था।
भारत में उस समय अनेक बहादुर राजा राज्य कर रहे थ। सर्वप्रथम सिकंदर ने अस्पसियों के साथ युद्ध किया। इस जाति के साथ सिकंदर का भयंकर युद्ध हुआ था। सिकंदर विजयी हुआ और वहाँ २३,००० मजबूत बैलों को पकड़कर उन्हें कृषि के कार्य के लिए मकदूनिया भेज दिया। एक-एक करके रास्ते में आनेवाले राजाओं को जीता। कहीं पर भय दिखाकर और कहीं पर लोभ या धोखा देकर विजयी हुआ। 'अश्वक' जाति के राज्य की ओर से ७०,००० आयुधजीवी (जिनका पेशा ही युद्ध था) अपने वचन को रखने के लिए अंत तक युद्ध करते रहे। परतंत्र जीवन स्वीकार करने से अधिक उन्होंने मृत्यु का आलिंगन करना ही अच्छा समझा। इस घटना से सिकंदर की वीरता और उदारता दोनों ही कलंकित हो गईं। इस घटना ने सिद्ध कर दिया कि सिकंदर वीर तो था किंतु उसमें राजनीतिक ईमानदारी का सर्वथा अभाव था। भारत की ऊपरी सीमा के देशों को जीतकर सिकंदर ने निकानर और फिलिप्स नामक अपने दो सेनानायकों को इन इलाकों का शासक बनाया।
निकानर सिंधु नदी के पश्चिमी भाग का शासक हुआ और फिलिप्स पुष्करावती (पेशावर) का शासक हुआ। सिकंदर पुन: आगे बढ़ा और तक्षशिला के पास रुका। तक्षशिला के राजा आंभीक ने स्वार्थ के कारण सिकंदर का साथ देना उचित समझा। आंभीक ने सिकंदर को सिंधु नदी पार करने में सहायता दी और भेदिया का काम किया। अटक के पास ओहिंद (वर्तमान उंड) नामक स्थान पर नौकाओं का पुल बना, उसने नदी पार की। उसके साथ 11,००० सैनिक थे। दूसरे किनारे पोरस का पुत्र उसका मुकाबला करने के लिए २००० अश्वारोहियों और 1२० रथों के साथ तैयार था। पोरस ने झेलम के किनारे सिकंदर का डटकर मुकाबिला किया। और अंत में पकड़ा गया। सिकंदर के प्रश्न पर उसने वीरोचित उत्तर दिया, 'मेरे साथ एक समान राजा की तरह व्यवहार होना चाहिए।' इस जवाब ने सिकंदर को बहुत प्रभावित किया और उसने उसका यथोचित सम्मान करके उसका राज्य उसे लौटा दिया। आगे मालव और क्षुद्रक राज्यों के संयुक्त विरोध के डर से सिकंदर ने सेना को दो भागों में स्वदेश जाने की आज्ञा दी। एक सेना सामुद्रिक मार्ग से यूनान रवाना हुई। दूसरी को अपने साथ लेकर पैदल यूनान चला। मार्ग में बाबुल नामक स्थान पर ३२३ ई. पू. में उसकी मृत्यु ३२ साल की उम्र में हो गई। ३२४ ई. पू. तक सिंधु क्षेत्र उसके साम्राज्य से बहार हो गया। कहा जाता है, सिकंदर ने आईने का आविष्कार किया। निज़ामी ने ईरानीश् भाषा में 'सिकंदरनामा' लिखकर उसकी कीर्ति को अक्षुण्ण बना दिया।