अजित केशकम्बल

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लेख सूचना
अजित केशकम्बल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 84
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भिक्षु जगदीश कश्यप ।

अजित केशकंबली भगवान बुद्ध के समकालीन एवं तरह-तरह के मतों का प्रतिपादन करने वाले जो कई धर्माचार्य मंडलियों के साथ घूमा करते थे उनमें अजित केशकंबली भी एक प्रधान आचार्य थे। इनका नाम था अजित और केश का बना कंबल धारण करने के कारण वह केशकंबली नाम से विख्यात हुए। उनका सिद्धांत घोर उच्छेदवाद का था। भौतिक सत्ता के परे वह किसी तत्व में विश्वास नहीं करते थे। उनके मत में न तो कोई कर्म पुण्य था और न पाप। मृत्यु के बाद शरीर जला दिए जाने पर उसका कुछ शेष नहीं रहता, चार महाभूत अपने तत्व में मिल जाते हैं और उसका सर्वथा अंत हो जाता है- यही उनकी शिक्षा थी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ