अक्काद
अक्काद
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 67 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भगवतीशरण उपाध्याय। |
अक्काद ईरान का प्राचीन प्रदेश और नगर; उत्तरी बाबुल (बेबीलोनिया) से अभिन्न; निचले मेसोपोतामिया का वह भाग जो प्राचीन काल में सुमेर और अक्काद वह प्रदेश था जहाँ दजला और फ़रात नदियाँ अपने मुहानों पर एक-दूसरे के अत्यंत समीप आ गई हैं। इसी प्रदेश में बेबीलोनिया के प्राचीन नगर कीश, बाबुल, सिप्पर, बोरसिप्पा, कुथा और ओपिस बसे थे।
अक्काद के भग्नावशेषों की सही पहचान में विद्वानों में मतभेद है। सर ई.ए. वालिस वज ने 1891 में तेल-एल-दीर को खोदकर उसके खंडहरों को अक्काद माना। उधर लैगडन ने सिप्पर याखुरू को अक्काद घोषित किया है। उत्तरी बाबुल में अक्काद चाहे जहाँ भी रहा हो, यह प्राचीन काल (ल. 2500-2400 ई. पू.) का अति ऐश्वर्यशाली नगर था जो अपने नाम के विस्तृत साम्राज्य की राजधानी बन गया। पुराविदों की राय में इतिहास का पहला साम्राज्य इसी अक्काद के राजाओं ने स्थापित किया। पहले वहाँ अशेमी सुमेरियों का राज था, बाद को कीश के एक शेमी परिवार के विजेता सारगोन ने सुमेरी शक्ति नष्ट कर अपना साम्राज्य स्थापित किया। उसने अक्काद को अपनी राजधानी बनाया जिससे बाइबिल की पुरानी पोथी और प्राचीन इतिहास में उसकी अक्काद का सारगोन (अक्कादीय सारगोन) संज्ञा प्रसिद्ध हुई। (
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ