अटलस पर्वत
अटलस पर्वत
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 85,86 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | राधिकानारायण माथुर । |
अटलस पर्वत (अंग्रेजी में Atlus) पर्वत कई पहाड़ों का समूह है जो उत्तर-पश्चिम तथा उत्तर अफ्रीका में है। अटलस नाम यूनान के एक पौराणिक देवता के आधार पर पड़ा जिनका निवास स्थान अनुमानत इसी पर्वत पर था। यह पर्वत बर्बर जाति के लोगों का वास स्थान है। इसके अगम्य भागों के निवासियों का जीवन सदा स्वतंत्र रहा है।
अटलस पर्वत के अंतर्गत श्रृंखलाओं की दिशा उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका के समुद्र तट के लगभग समानांतर है। ये श्रृंखलाएँ 1,500 मील लंबी हैं जो पश्चिम में जूबो अंतरीप से आरंभ होकर पूर्व में गेब्स की खाड़ी तक मोरक्को, अलजीरिया और ट्यूनीशीया में फैला है। इनकी उत्तरी और दक्षिणी सीमाएँ क्रमश रूमसागर और सहारा मरुस्थल हैं। इनके दो मुख्य उपविभाग हैं:
(1) समुद्रतटीय श्रेणी- क्यूटा से बीन अंतरीप तक,
(2) अंतरस्थ श्रेणी, जो ग्विर अंतरीप से आरंभ होती है और समुद्र तटीय श्रेणी के दक्षिण ओर फैली हुई है।
इन दोनों के बीच शाट्स का उच्च पठारी प्रदेश है।
अंतरस्थ श्रेणी
अटलस पर्वत की अंतरस्थ श्रेणी, जिसे महान् अटलस भी कहते हैं, मोरक्को में स्थित है। यह सबसे लंबी और ऊँची श्रेणी है। इसकी औसत ऊँचाई 11,000 फुट है। इसकी उत्तरी ढाल पर जलसिंचित उपजाऊ घाटियाँ हैं जिनमें छोटे-छोटे खेतों में बर्बर लोग खेती करते हैं। यहाँ बाँझ (ओक), चोड़, कार्क, सोडार इत्यादि के घने वन पाए जाते हैं।
भूगर्भ विज्ञान
अटलस पर्वत का निर्माण ऐल्प्स पर्वत के लगभग साथ ही हुआ। भूपर्पटी की उन गतियों का आरंभ, जिनसे अटलस पर्वत बना, महाशरट (जुरैसिक) युग के अंत में हुआ। ये गतियाँ उत्तरखटी (अपर क्रिटेशस) युग में पुन क्रियाशील हुई है और इनका क्रम मध्यनूतन (माइओसीन) युग तक चलता रहा। यहाँ पूर्वकाल में भी भंजनक्रिया के प्रमाण मिलते हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ