थर्माइट

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थर्माइट सन 1८९५ में जर्मन वैज्ञानिक हांस गोल्डशिमट् ने क्रोमियम और मैंगनीज़ धातु बनाने के प्रयत्न मे एक मिश्रण खोज निकाला, जिसके द्वारा अनेक धातुओं के ऑक्साइडों का सरलता से अवकरण हो सकता था। ऐसे एक संमिश्रण को थर्माइट कहते हैं। ऐल्यूमिनियम द्वारा धातुओं के ऑक्साइड, सल्फाइड एवं क्लोराइड का अवकरण हो सकता है। इस क्रिया में उच्च ताप उत्पन्न होता है। इसमें धमाके का भय भी रहता है। गोल्डश्मिट ने अपने अनुसंधानों से ज्ञात किया कि धातु के ऑक्साइड और ऐल्यूमिनियम चूर्ण को मिश्रित कर अवकरण क्रिया को एक फ्यूज़ द्वारा प्रारंभ करना ठीक होगा। यह फ्यूज़ बेरियम पेराक्सॉइड अथवा मैग्नीशियम धातु को चिनगारी द्वारा जलाने से प्रारंभ हो सकता है। इस विधि से, जिसे ऐल्यूमिनोथर्मिक विधि कहते हैं, विशुद्ध धातु का निर्माण हो सकता है।

अभिक्रिया

थर्माइट शब्द का प्रयोग ऐल्यूमिनियम चूर्ण और लौह ऑक्साइड के मिश्रण के लिये होता है। इस मिश्रण के द्वारा दहन करने से निम्नलिखित क्रिया होगी :

८ ऐ + 3 लो3 औ४ = ९ लो + ४ ऐ2 औ3

(८ Al + 3 Fe3O4 = ९ Fe + ४Al2O3)

इस क्रिया द्वारा लगभग 2,५००° सेंo ताप उत्पन्न होता है। स्थूल भार में लगभग 3 भाग ऐल्यूमिनियम और 1० भाग लोह ऑक्साइड की क्रिया द्वारा ७ भाग इस्पात तैयार होता है।

उपयोग

थर्माइट क्रिया का उपयोग लौह और इस्पात को शुद्ध करने में भी हुआ है। यह संधान उद्योग में ही विशेषत: काम आती है। लोहे की छड़ों, या मशीन के टूटे भागों को, जोड़ने के लिये थर्माइट के चूर्ण को एक खुली मूषा में उनके ऊपर रखते हैं। मिश्रण को जलते मैग्नीशियम द्वारा चिनगारी लगाने पर द्रव लौह बनता है, जिसे जुड़नेवाले भागों के मध्य में प्रवाहित करते हैं, जिससे जोड़ का स्थान लौह से पूर्णतया भर जाता है। तत्पश्चात्‌ जुड़े भाग को खराद आदि से खुरचकर चिकना कर लेते हैं। इस विधि से मशीनों के बड़े टुकड़े, जैसे रेल इंजन के फ्रेम, जहाजों के नोदक आदि बहुत शीघ्र जुड़ जाते हैं। कभी कभी इस क्रिया द्वारा उत्पन्न उच्च ताप से ही पाइप आदि जोड़े जाते हैं। उपयोगिता के अनुसार आजकल अनेक प्रकार के थर्माइट मिश्रण बनते हैं। इनमें न्यून मात्रा में कुछ और धातुएँ, जैसे निकेल (Ni), मैंगनीज़ (Mn), फरोसिलिकॉन आदि मिली रहती हैं। ऐसे थर्माइट का उपयोग विशेष प्रकार के औजारों को जोड़ने में होता है। [रमेशचंद्र कपूर]

टीका टिप्पणी और संदर्भ