संवत
संवत् समयगणना का मापदंड-भारतीय समाज में अनेक प्रचलित संवत् हैं। मुख्य रूप से दो संवत् चल रहे हैं, प्रथम विक्रम संवत् तथा दूसरा शक संवत्। विक्रम संवत् ई. पू. ५८ वर्ष प्रारंभ हुआ। यह संवत् मालव गण के सामूहिक प्रयत्नों द्वारा गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रम के नेतृत्व में उस समय विदेशी माने जानेवाले शक लोगों की पराजय के स्मारक रूप में प्रचलित हुआ। जान पड़ता है, भारतीय जनता के देशप्रेम और विदेशियों के प्रति उनकी भावना सदा जागृत रखने के लिए जनता ने सदा से इसका प्रयोग किया है क्योंकि भारतीय सम्राटों ने अपने ही संवत् का प्रयोग किया है। इतना निश्चित है कि यह संवत् मालव गण द्वारा जनता की भावना के अनुरूप प्रचलित हुआ और तभी से जनता द्वारा ग्राह्य एवं प्रयुक्त है। इस संवत् के प्रारंभिक काल में यह कृत, तदनंतर मालव और अंत में विक्रम संवत् रह गया। यही अंतिम नाम इस संवत् के साथ जुड़ा हुआ है। शक संवत् के विषय में बुदुआ का मत है कि इसे उज्जयिनी के क्षत्रप चेष्टन ने प्रचलित किया। शक राज्यों को चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने समाप्त कर दिया पर उनका स्मारक शक संवत् अभी तक भारतवर्ष में चल रहा है। शक संवत् ७८ ई. में प्रारंभ हुआ।