महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 169 श्लोक 1-18

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एकोनसप्‍तत्‍यधिकशततम (169) अध्‍याय: उद्योग पर्व (रथातिरथसंख्‍यानपर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: एकोनसप्‍तत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
पाण्‍डवपक्ष के रथी आदि का एवं उनकी महिमा का वर्णन

भीष्‍मजी कहते हैं— नरेश्‍वर ! ये तुम्‍हारे पक्ष के रथी, अतिरथी और अर्धरथी बताये गये हैं। राजन ! अब तुम पाण्‍डवपक्ष के रथी आदि का वर्णन सुनो। नरेश ! अब यदि पाण्‍डवों की सेना के विषय में भी जानकारी करने के लिये तुम्‍हारे मन में कौतूहल हो तो इन भूमिपालों के साथ तुम उनके रथियों की गणना सुनो। तात्‍ ! कुन्‍ती का आनंद बढाने वाले स्‍वयं पाण्‍डुपुत्र राजा युधिष्ठिर एक श्रेष्‍ठ रथी (महारथी) हैं। वे समरभूमि में अग्नि के समान सब ओर विचरेंगे, इसमें संशय नहीं है। राजेन्‍द्र ! भीमसेन तो अकेले आठ रथियों के बराबर हैं। गदा और बाणों द्वारा किये जाने वाले युद्ध में उनके समान दूसरा कोई योद्धा नहीं है। उनमें दस हजार हाथियों का बल है । वे बडे ही मानी तथा अलौकिक तेज से सम्‍पन्‍न है। माद्री के दोनों पुत्र अश्विनीकुमारों के समान रूपवान्‍ और तेजस्‍वी हैं। वे दोनों ही पुरूषरत्‍न रथी हैं। ये चारों भाई महान्‍ क्‍लेशों का स्‍मरण करके तुम्‍हारी सेना में घुसकर रूद्रदेव के समान संहार करते हुए विचरेंगे; इस विषय में मुझे संशय नहीं है। ये सभी महामना पाण्‍डव शालवृक्ष के स्‍तम्‍भों के समान ऊँचे हैं । उनकी ऊँचाई का मान पुरूषों से एक बित्‍ता अधिक है। सभी पाण्‍डव सिंहके समान सुगठित शरीरवाले और महान बलवान हैं । तात ! उन सबने ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया है, पुरूषों में सिंह के समान पराक्रमी पाण्‍डव तपस्‍वी, लज्‍जाशील और व्‍याघ्र के समान उत्‍कृट बलशाली हैं। भरतश्रेष्‍ठ ! वे वेग, प्रहार और संघर्ष में अमानुषिक शक्ति से सम्‍पन्‍न हैं । उन सबने दिग्विजय के समय बहुत से राजाओं पर विजय पायी है । कुरूनान्‍दन ! इनके आयुधों, गदाओं और बाणों का आघात कोई भी नहीं सह सकते हैं । इनके सिवा न तो कोई इनके धनुष पर प्रत्‍यंचा ही चढा पाते हें, न युद्ध में इनकी भारी गदा को ही उठा सकते हैं ओर न इनके बाणों का ही प्रयोग कर सकते हैं । वेग से चलने, लक्ष्‍य-भेद करने; खाने पीने तथा धूलि-क्रीडा करने आदि में उन सबने बाल्‍यावस्‍था में भी तुम्‍हें पराजित कर दिया था। इस सेना में आकर वे सभी उत्‍कृट बलशाली हो गये हैं । युद्ध में आने पर वे तुम्‍हारी सेना को विध्‍वंस कर डालेंगे । मैं चाहता हूं उनसे कहीं भी उनसे कहीं भी तुम्‍हारा मुठभेड न हो। उनमें से एक-एक में इतनी शक्ति है कि वे समस्‍त राजाओं का युद्ध में संहार कर सकते हैं। राजेन्‍द्र ! राजसूय-यज्ञ में जैसा जो कुछ हुआ था, वह सब तुमने अपनी आंखो देखा था। द्यूतक्रीड़ा के समय द्रौपदी को जो महान क्‍लेश दिया गया और पाण्‍डवों के प्रति कठोर बातें सुनायी गयीं, उन स‍बको याद करके वे संग्रामभूमि में रूद्र के समान विचरेंगे । लाल नेत्रों वाले निद्राविजयी अर्जुन के सखा और सहायक नारायणस्‍वरूप भगवान्‍ श्रीकृष्‍ण हैं। कौरव-पाण्‍डव दोनों सेनाओं में अर्जुन के समान वीर रथी दूसरा कोई नहीं है। समस्‍त देवताओं, असुरों, नागों, राक्षसों तथा यक्षों में भी अर्जुन के समान कोई नहीं है; फिर मनुष्‍यों में तो हो ही कैसे सकता है? भूत या भविष्‍य में भी कोई ऐसा रथी मेरे सुनने में नहीं आया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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