जुलियन
जुलियन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 27 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | सत्यदेव विद्यालंकार |
- जुलियन (331-363)
रोमन सम्राट् जुलियन का जन्म सन् 331 में कुस्तुनतुनियां में हुआ। वह जुलियस कोंस्तोनिअस का पुत्र था। कोंस्तांतीन महान् का भतीजा होने के कारण वह रोमन साम्राज्य की राजगद्दी का उत्तराधिकारी था इसलिये उसके बचपन में कोस्तांस्तीन के द्वेषी और राजगद्दी पर गृद्ध-दृष्टि रखनेवालों से बार बार खतरा बना हुआ था। बचपन में ही उसके भाई गालस को छोड़कर उसके पूरे परिवार की हत्या कर दी गई थी। बाद में गालस पर जो उसके चाचा कोंस्तोनिअस द्वितीय के द्वारा सीज़र बना दिया गया था, अभियोग चला कर मृत्यु दंड दे दिया गया, क्योंकि कोंस्तोनिअस द्वितीय उसके प्रति सशंक हो गया था। इस प्रकार फ्लेवियाई राजघराने में केवल दो ही पुरुष जीते रह गए थे। जब माल प्रदेश पर जर्मन अलमानी चढ़ आए तब उन्हें खदड़ने के लिये कोंस्तोनिअस को बाध्य होकर जुलियन को सीजर बनाना पड़ा। सन् 35७ में जुलियन ने स्त्रावर्ग स्थान पर अलमानियों को हराकर अपनी सैनिक प्रतिभा का अद्भुत परिचय दिया, जिससे वह देकर इतना लोकप्रिय हो गया कि चार साल बाद उसकी सेना ने उसे सम्राट् घोषित कर दिया और वह साम्राज्य का राज्याधिकार प्राप्त करने के लिये कोंस्तानिअस के खुले प्रतिद्वन्द्वी के रूप में सामने आ गया लेकिन इसके पहले कि उससे संघर्ष हो कोंस्तोनिअस की मृत्यु हो गई। जुलियन निर्विरोध सिंहासनारूढ़ हो गया।
सन् 361 से लेकर 363 तक के अपने निर्विघ्न शासन काल में उसने अपना अधिकतर ध्यान फारस की ओर लगाया और 362 में फारस के प्रदेश में घुस गया लेकिन स्तोसिअन शहर के मजबूत गढ़ पर अधिकार करने में उसे सफलता नहीं मिली। उसके बाद फारस की सेना ने उसे घेर लिया। उसे बहुत गंभीर चोट लगी और चंद घंटों में उसकी मृत्यु हो गई।
अपने जिस कार्य के लिये जुलियन अधिक जाना जाता है, वह है उसका धार्मिक दृष्टिकोण। उसने ईसाइयों के साथ बहुत कठोर व्यवहार किया। उन्हें शाही कार्यालयों से निकाल बाहर किया। ईसाई धर्म की शिक्षा के मार्ग में कई कठिनाइयाँ पैदा कर दीं। उसका व्यक्तिगत जीवन बहुत ही रहस्मय था और वह दार्शनिकों जैसे कपड़े पहनता था। वह प्रकृति का आत्मसंयमी और जनहित के कार्यों में बहुत रुचि लेनेवाला व्यक्ति था। अपने शासन काल में उसने अनेक सांस्कृतिक तथा साहित्यिक कार्यों को प्रोत्साहित किया। वह स्वयं भी संपन्न लेखक था। उसके लिखे पत्र, भाषण अंग्रेजी में अनूदित और 'बैक्वेट ऑव दी सीजर्स' नामक काव्य ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हैं।