महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 57 श्लोक 33-45

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सप्तपञ्चाशत्तम (57) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: सप्तपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 32-45 का हिन्दी अनुवाद

जैस पुत्र अपने पिता के घर में निर्भीक होकर रहते हैं, उसी प्रकार जिस राजा के राज्य में मनुष्य निर्भय होकर विचरते है, वह सब राजाओं मे श्रेष्ठ है। जिसके राज्य अथवा नगर में निवास करने वाले लोग ( चोरों से भय न होने के कारण ) अपने धन को छिपाकर न रखते हों तथा न्याय और अन्याय को समझते हों वह राजा समस्त राजाओं मे श्रेष्ठ है। जिसके राज्यमें निवास करने वाले लोग विधिपूर्वक सुरक्षित एवं पालित होकर अपने-अपने कर्म में संलगन, शरीर में आसक्ति न रखने वाले और जितेन्द्रिय हों, अपने वश में रहते हो, शिक्षा देने और ग्रहण करने योग्य हों, आज्ञा पालन करने हों, कलह और विवाद से दूर रहते हों और दान देने की रूचि रखतें हों, वह राजा श्रेष्ठ है। जिस भूपाल के राज्य में कूटनीती, कपट, माया तथा ईष्र्या का सर्वथा अभाव हो उसी के द्वारा सनातन धर्म का पालन होता है। जो ज्ञान एवं ज्ञानियों का सत्कार करता है, शास्त्र के ज्ञातव्य विषय को समझने तथा परहित -साधन करने मे संलगन रहता है, सत्पुरूषों के मार्ग पर चलने वाला और स्वार्थत्यागी है, वही राजा राज्य चलाने के योग्य समझा जाता है। जिसके गुप्तचर, गुप्त विचार, निश्चय किए हुए करने योग्य कर्म और किये हुए कर्म शत्रुओं द्वारा कभी जाने न जा सकें, वहीं राजा राज्य पाने का अधिकारी है। भारत! महात्मा भार्गव ने पूर्वकाल में किसी राजा के प्रति राजोचित कर्तव्य का वर्णन करते समय इस श्लोक का गान किया था। मनुष्य पहले राजा को प्राप्त करे। उसके बाद पत्नी का परिग्रह और धन का संग्रह करे। लोकरक्षक राजा के न होने पर कैसे भार्या सुरक्षित रहेगी और किस तरह धन की रक्षा हो सकेगी? राज्य चाहने वाले राजाओं के लिये राज्य में प्रजाओं की भलीभाँति रक्षा को छोडकर और कोई सनातम धर्म नहीं है, रक्षा ही जगत को धारण करने वाली है। राजेन्द्र! प्राचेतस मनु ने राजधर्म के विषय में ये दो श्लोक कहे हैं। तुम एकचित्त होकर उन दोनों श्लोकों को यहाँ सुनो। जैसे समुद्र की यात्रा में टूटी हुई नौका का त्याग कर दिया जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य को चाहिये कि वह उपदेश न देने वाले आचार्य, वेदमन्त्रों का उच्चारण न करने वाले ऋत्विज, रक्षा न कर सकने वाले राजा, कटु वचन बोलने वाली स्त्री, गाँव में रहने की इच्छा रखने वाले ग्वाले और जंगल में रहने की कामना करने वाले नाई- इन छः व्यक्तियों का त्याग कर दे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्व में सत्तावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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