मुखिया

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०४:१७, १७ सितम्बर २०१५ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
मुखिया
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 9
पृष्ठ संख्या 318
भाषा हिन्दी देवनागरी
लेखक भगवतीशरण सिंह
संपादक फूलदेवसहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1967 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

मुखिया वैदिक काल में गाँव का मुखिया ग्रामणी कहलाता था। ऋग्वेद में उसकी तुलना साक्षात्‌ राजा से की गई है (ऋग्वेद 10।105) महावग्ग, कुलावक जातक, खरसर जातक और उभतोभट्ट आदि बौद्ध ग्रंथों में ग्रामणी या ग्रामभोजक का उल्लेख है जिसे ग्राम की देख रेख करनी पड़ती थी और मालगुजारी भी वही वसूल करता था। मनु, शुक्र, विष्णु आदि स्मृतियों में ग्रामिक के कर्तव्य बतलाए गये हैं। 'ग्रामस्याधिपतिं कुर्याद्दश ग्रामपतिं तथा (मनु. 7।115), 'ग्राम दोषान्‌ समुत्पन्नांग्रामिक: शनकै: स्वयम्‌। शंसेद् ग्राम दशैशाय दशैशो विशंतीशिने। (मनु. 7। 116)।

'अर्थशास्त्र' और चंद्रगुप्त मौर्य का ग्रामिक संभवत: चुना हुआ कर्मचारी था। गुप्तकाल में भी ग्राम के प्रमुख को ग्रामिक कहते थे। इसके अस्तित्व को मुस्लिम काल में भी माना गया है। बहमनी राज्य में कर वसूल करने के लिए इसकी सहायता ली जाती थी। मुर्शिद कुली ने करवसूली के लिए गाँव पटेल नियुक्त किए थे। अंग्रेजी राज्य में भी मुखिया का अस्तित्व बना रहा। उसकी नियुक्ति आदि के लिए नियम बनाए गए थे। जिलाधीश या उसके द्वारा अधिकृत परगनाधीश प्रत्येक ग्राम या ग्राम समूह के लिए एक या एकाधिक व्यक्तियों को मुखिया नियुक्त करता था, जो अच्छे चालचलन वाला और प्रभावशाली व्यक्ति होता था।


जिलाधीश या परगनाधीश ही मुखिया को पदच्युत भी कर सकते थे। उनके प्रमुख कर्त्तव्य ग्राम सुरक्षा से संबद्ध थे और वह अपने क्षेत्र की ऐसी सभी घटनाओं की जिनसे शांति और सुरक्षा को खतरा हो सूचना निकटस्थ थाने या मजिस्ट्रेट को देता था। पंचायत राज अधिनियम लागू होने पर यह व्यवस्था स्वत: समाप्त हो गई है और अब इस प्रकार का दायित्व किसी एक व्यक्ति पर नहीं है।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ