महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 67 श्लोक 14-23

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सप्‍तषष्टितम (67) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व:सप्‍तषष्टितम अध्याय: श्लोक 14-23 का हिन्दी अनुवाद


राजन्। मृत्‍यु के फैले हुए मुंह के समान कर्ण के पास पहुंचकर प्रभद्रकगण भारी संकट में पड़ गये। कर्ण ने युद्ध के समुद्र में डूबे हुए उन सात सौ रथियों को तत्‍काल मृत्‍यु के लोक में भेज दिया था । अचिन्‍त्‍यकर्मा नरेश्वर। जब तक सूतपुत्र ने हमलोगों को नहीं देखा था, तब तक उसके मन में उद्वेग या खेद नहीं हुआ था। मैंने जब सुना कि उसने पहले आप पर दृष्टिपात किया था और आप से उसका युद्ध भी हुआ था, साथ ही उससे भी पहले अश्वत्‍थामा आपको क्षत-विक्षत कर दिया था, तब क्रूरकर्मा कर्ण के सामने से आपका यहां चला आना ही मुझे समयोचित प्रतीत हुआ । पाण्‍डुनन्‍दन। मैंने युद्ध में अपने सामने कर्ण के इस विचित्र अस्‍त्र को देखा था। सृंजयों में दूसरा कोई ऐसा योद्धा नहीं है, जो आज महारथी कर्ण का सामना कर सके । राजन्। शिनिपौत्र सात्‍यकि और धृ‍ष्टद्युम्‍न मेरे चक्र रक्षक हों; युधामन्‍यु और उत्तमौजा, ये दोनों शूरवीर राज कुमार मेरे पृष्‍ठभाग की रक्षा करें महानुभाव। भरतवंशी नृपश्रेष्‍ठ। शत्रुसेना में विद्यमान रथियों में प्रमुख वीर दुर्जय सूतपुत्र कर्ण के साथ, यदि इस संग्राम में आज वह मुझे दीख जाय तो युद्धस्‍थल में मिलकर मैं उसी तरह युद्ध करुंगा, जैसे वज्रधारी इन्‍द्र ने वृत्रासुर के साथ किया था । आइये, देखिये, आज मैं रणभूमि में सूतपुत्र पर विजय पाने के लिये युद्ध करना चाहता हूं। प्रभद्रकगण कर्ण पर धावा कर रहे हैं, ऐसा करके वे मानो अजगर के मुख में पड़ गये हैं । भारत। छ: हजार राजकुमार स्‍वर्गलोक में जाने के लिये युद्ध के सागर में मग्‍न हो गये हैं। राजन् राजसिंह। यदि आज मैं बन्‍धुओं सहित युद्ध में तत्‍पर हुए कर्ण को हठपूर्वक न मार डालूं तो प्रतिज्ञा करके उसका पालन न करने वाले को जो दु:खदायी गति प्राप्‍त होती है, उसी को मैं भी पाऊंगा । मैं आप से आज्ञा चाहता हूं। आप रणभूमि में मेरी विजय का आशीर्वाद दीजिये। नरेन्‍द्रसिंह। धृतराष्ट्र के पुत्र भीमसेन को ग्रस लेने की चेष्‍टा कर रहे हैं। मैं इसके पहले ही सूतपुत्र कर्ण को, उसकी सेना को तथा सम्‍पूर्ण शत्रुओं को मार डालूंगा ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्ण पर्व में अर्जुनवाक्‍य विषयक सरसठवां अध्‍याय पूरा हुआ ।





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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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