विष
विष
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 11 |
पृष्ठ संख्या | 132 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी, फूलदेव सहाय वर्मा, मुकंदीलाल श्रीवास्तव |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1969 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | गोरखनाथ चतुर्वेदी तथा विवेकानंद पांडेयं |
विष ऐसे पदार्थों के नाम हैं, जो खाए जाने पर श्लेष्मल झिल्ली (mucous membrane), ऊतक या त्वचा पर सीधी क्रिया करके अथवा परिसंचरण तंत्र (circulatory system) में अवशोषित होकर, घातक रूप से स्वास्थ्य को प्रभावित करने, या जीवन नष्ट करने, में समर्थ होते हैं।
विषाक्तता के लक्षण
- जठरांत्र उत्तेजन[१]- साधारणतया वमन, पेट की पीड़ा और अतिसार[२]विषाक्तता के प्रमुख लक्षण हैं। यदि कुछ ही घरों के भीतर अनेक व्यक्ति विषाक्तता के शिकार हुए हों, तो किसी खास वस्तु को क्षोभक (irritant) का वाहक समझा जा सकता है।
- प्रलाप - यह रासायनिक विष या उपापचयी (metabolic) गड़बड़ी और ज्वर के परिणामस्वरूप उत्पन्न रुधिरविषाक्तता[३]के कारण होता है। थोडी खुराक में ही प्रलाप उत्पन्न करनेवाले रासायनिक विषों में वारविट्यूरेट, ब्रोमाइड का चिरकालिक मशा, ऐल्कोहॉल, हाइओसायनिन[४]आदि है। इनमें से प्रथम तीन अधिक प्रचलित हैं और प्रलाप प्राय: अत्यल्प नशे का सूचक होता है।
- सम्मूर्च्छा[५]- प्रमस्तिष्कीय[६] क्षति अधिक होने पर प्रलाप सम्मूर्च्छा में परिवर्तित होता है। सामान्यतया बारविट्यूरेट और ऐल्कोहॉल ऐसे परिणाम उत्पन्न करते हैं।
- ऐठन[७]ये दो प्रकार की होती हैं
- मेरुदंडीय या टाइटेनिक ऐंठन, जो अक्सर बाह्य उद्दीपन, जैसे स्ट्रिकनिन[८]से उत्पन्न होती है (इसमें स्फूर्ति[९]रहती है और संज्ञा संतुलित रहती है),
- प्रमस्तिष्कीय या मिर्गीजन्य ऐंठन में संज्ञाहीनता होती है और स्फूर्ति तथा क्लोनी[१०]ऐंठन पर्यायक्रम से होती हैं। प्रतिहेस्टामिन ओषधि, कपूर, फेरस सल्फेट और ऐफाटैमिन इसके उदाहरण हैं।
- परिणाह चेताकोप [११]- सीसा, आर्सेनिक सोना, पारा आदि से चिरकालिक[१२]विषाक्तता होने पर परिणाह पेशी की दुर्बलता होती है, जिसमें शरीर छीजता है और जठरांत्र[१३]विक्षोभ भी होता है।
विषों का वर्गीकरण
- संक्षारक-सांद्र अम्ल और क्षार
- उत्तेजक
- अकार्बनिक - फॉस्फोरस, क्लोरिन, ब्रोमीन, आयोडीन आदि अधात्विक और आर्सेनिक, ऐंटिमनी, पारा, ताँबा, सीसा, जस्ता, चाँदी आदि धात्विक
- कार्बनिक - रेंड़ी का तेल और बीज, मदार, क्रोटन[१४] तेल, घृतकुमारी[१५]आदि वनस्पति और हरिभृंग[१६]साँप तथा अन्य कीटों के दंश
- यांत्रिक - हीरे की धूल, चूर्णित काच, बाल आदि
- रुग्णतंत्रिक[१७]
- मस्तिष्क को क्षति पहुँचानेवाले, अफी और उसके ऐल्केलॉयड, ऐल्कोहॉल, ईथर, क्लोरोफॉर्म, धतूरा, बेलाडोना, हायेसायामस[१८]
- मेरुरज्जु को प्रभावित करनेवाले - कुचला [१९]जेलसेमियम मूल
- हृदय को प्रभावित करनेवाले - वच्छनाभ[२०]डिजिटैलिस[२१]कनेर, तंबाकू, हाइड्रोसायनिक, अम्ल, #श्वासावरोधक[२२]- कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, कोयला गैस, #परिणाह - विषगर्जर[२३]कोरारी ([२४]
तीक्ष्ण विषाक्तता के उपचार के सिद्धांत
विषाक्तता के आपाती उपचार[२५]के लिए, जिसमें जीवविष[२६]खा लिया गया हो, निम्नलिखित क्रियाविधि अपनानी चाहिए
- विशिष्ट या सामान्य प्रतिकारक[३०]देकर विष का निष्क्रिय करना और तब वस्तिक्रिया का उपचार।
- श्लेष्मल झिल्लियों को शमकों ([३४]के प्रयोग द्वारा बचाना।
विष का निष्कासन
तीव्र अम्ल, क्षार या अन्य संक्षारक पदार्थ द्वारा विषाक्तता होने पर आमाशय नलिकाओं [३५] या वमनकारियों, का उपयोग नहीं करना चाहिए। इनसे जठरीय वेधन [३६] हो सकता है। जठर में स्थित अंतर्वस्तु की खाली करने का सबसे सरल उपाय वमन है। वमन का प्रयोग तभी करना चाहिए जब रोगी चिकित्सक को सहयोग देने की स्थिति में हो, उसके शरीर में अतिरिक्त विष हो और आमाशय नलिकाओं का अभाव हो, या रोगी आमाशय नलिकाओं का उपयोग कर सकने की स्थिति में न हो। निद्रालु या अचेतन रोगी को वमन नहीं कराना चाहिए, क्योंकि उसके आमाशय की अंतर्वस्तु के तरलापनयन[३७]का भय रहता है। संक्षारक विषों के उपशमकों के अंतर्ग्रहण की स्थिति में भी वमन वर्जित है।
वमन कराने के लिए गले में अँगुली या अन्य वस्तु का प्रयोग करना चाहिए, या निम्नलिखित वस्तुओं में से कोई चीज खिलानी चाहिए : ऐयोमॉरफ़ीन हाइड्रोक्लोराइड, चूर्णित सरसों,[३८]और नमक या प्रबल साबुन जल [३९]
जठरीय तरलापनयन और वस्तिक्रिया
- अतिरिक्त असंक्षारक विषों का निष्कासन, जिन्हें बाद में जठरांत्र क्षेत्र [४०]से अवशोषित किया जा सकता है
- वमन केंद्र के निर्बल होने पर जब वमन नहीं होता, केंद्रीय तंत्रिकातंत्र को अपसादित करनेवाले विष का निष्कासन
- विषों की पहचान के लिए जठरीय अंतर्वस्तुओं के संचय और परीक्षण के लिए तथा #विषप्रतिकारकों के सुविधाजनक प्रयोग के लिए।
निषेधक लक्षण
निम्नलिखित स्थितियों में जठरीय तरलापनयन और वस्ति क्रिया नहीं की जाती हैं :
- विष के द्वारा ऊतकों का व्यापक संक्षारण
- तीव्र नि:संज्ञ, जडिमाग्रस्त[४१] या निश्चेतनताग्रस्त (comatose), रोगी, क्योंकि उसे तरलापनयन फुफ्फुसार्ति [४२] का खतरा रहता है।
विधि
नाक या मुँह द्वारा आमाशय में एक चिकनी, मृदु, न दबनेवाली अमाशय नली को धीमे धीमे प्रवेश कराना चाहिए। वस्तिक्रिया प्रचुर हो, परंतु अमाशय का आध्मान[४३]न किया जाए। कुछ स्थितियों में थोड़े थोड़े अंतर पर अल्प तरल के साथ वस्तिक्रिया करना अच्छा होता है। वस्तिक्रिया के विलयन के आधिक्य को निकालना अनिवार्य है।
जठरीय वस्तिक्रिया के तरल
- गुनगुना पानी या #प्रतिशत नमकीन पानी,
- पतला विलेय स्टार्च पेस्ट [४४]
- एक प्रतिशत सोडियम बाइकार्बोनेट,
- पोटैशियम परमैंगनेट (1:2000) विलयन,
- एक प्रतिशत विलेय थापोसल्फेट तथा
- एक या दो प्रतिशत हाइड्रोजन परऑक्साइड।
विरेचन[४५]- यह मंदकारी अवशोषण में प्रभावकारी हो सकता है। आंत्रिक अवशोषण के पहले विष का निष्क्रिय करण करने के लिए जठरीय वस्तिक्रिया अनिवार्य है, यदि तीव्र अम्ल या क्षार से विषाक्तता न हुई हो। जिस स्थिति में बस्तिक्रिया संभव नहीं है, उसके लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए :
- विष प्रतिकारकों के द्वारा अम्लों और क्षारों का उदासीनिकरण
- विशिष्ट रसायनकों का अवक्षेपण (यह क्रिया विशिष्ट कारकों पर निर्भर होनी चाहिए) तथा
- शमकों द्वारा निष्क्रियकरण (शमक धातुओं को अवक्षेपित करते हैं अनेक विषों के अवशोषण को कम करने में सहायक होते हैं और ये प्रदाहग्रस्त झिल्लियों को बड़ी शांति प्रदान करते हैं 3-4अंडों का श्वेतक 500 मिली लिटर दूध या पानी में, मखनिया दूध, पतले आटे या मंड के विलयन में (यदि संभव हो तो उबले हुए में) मिलाकर देना चाहिए।
सहायक और लाक्षणिक उपाय
तीव्र विषाक्तता के शिकार लोगों को जागरूक डाक्टरी देखभाल में रखना चाहिए, जिससे विषाक्तता की तात्कालिक और विलंबित जटिलताओं का पूर्वानुमान किया जा सके। विष खाकर आत्महत्या करने में विफल लोगों को किसी मनश्चिकित्सक की देखरेख में रखना डाक्टरी चाहिए।
परिसंचारी विफलता[४६]इसमें
- संक्षोभ के समय मुख्य उपाय हैं, पार्श्वशायी स्थिति [४७]ऊष्मा, उद्दीपकों का प्रयोग और प्रभावी रुधिर आयतन की वृद्धि के लिए आंत्रेतर तरलों का [४८]प्रयोग,
- हृदीय असफलता के समय मुख्य उपाय है, ऑक्सीजन, डिजिटेलिस (digitalis), पारदीयमूत्रवर्धक औषधियों का सेवन, तथा
- फुप्फुसशोथ [४९]के समय मुख्य उपाय है, धनात्मक दबाव के साथ ऑक्सीजन सेवन, आंत्रेतर [५०]लवण या अन्य आंत्रेतर तरल (प्लाज्मा छोड़कर) से बचाना।
श्वसन असामान्यताएँ
श्वसन अवरोध के समय मुखग्रसनी[५१]वायुपथ और आंतरश्वासप्रणाल [५२]निनालन [५३]को ठीक करना चाहिए। #श्वसन अवनमन [५४] के समय रोगी को खुली हवा में कृत्रिम श्वसन कराना चाहिए। पुनरुज्जीवक (resuscitator), या अन्य स्वयंचल संवातन, यथाशीघ्र करना चाहिए। उद्दीपकों से लाभ होना संदिग्ध है। साधारणतया उपयोग में आनेवाले उद्दीपक निम्नलिखित हैं :
- गरम, कड़ी काली कॉफी, मुख से या गुदामार्ग से
- गरम कड़ी चाय मुख से
- एक प्याले पानी में दो या चार मिलिलीटर अमोनिया का ऐरोमेटिक स्पिरिट
- 50-120 मिलिलीटर एफेड्रिन सल्फेट मुख से या अधस्त्व्क रूप से
- कोरामिन[५५]की सूई
- ऐंफाटैमिन सल्फेट 5-40 मिलिग्राम मुख से या सूई से तथा
- मेथाऐंफाटैमिन हाइड्रोक्लोराइड, 2.5-15 मिलिग्राम मुख से
केंद्रीय तंत्रिकातंत्र संयोग
- केंद्रीय तंत्रिकातंत्र की उत्तेजना होने पर सम्मोहक या प्रति आक्षेप (anti-convulsant) का प्रयोग करना चाहिए
- ऐमोबारबिटल सोडियम (ऐमिटल) का ताजा 10 प्रतिशत विलयन 250-500 मिलिमीटर,
- पैराऐल्डिहाइड मुख से, गुदामार्ग से या नितंब में तथा
- कैल्सियम ग्लूकोनेट 10 प्रतिशत, 10-20 मिलिलीटर, सूई से।
निर्जलीकरण ([५६]) - संकेतानुसार मौखिक या आंत्रेतर तरल।
पीड़ा
पीड़ाहर और स्वापक [५७] ओषधि देनी चाहिए।
चाहे कैसी ही विषाक्तता हो, यह चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह वमित पदार्थ, आमाशय धावन [५८]और मल मूत्र का नूमना सुरक्षित रखे। रोगी का नाम, संरक्षित पदार्थ का नाम, परीक्षण की तिथि और नमूने को ताले में बंद कर रखना चाहिए।
यदि गैरसरकारी चिकित्सक को शंका हो जाए कि रोगी की हत्या करने के लिए विष दिया गया है, तो उसे आपराधिक कार्यवाही संहिता की ४४वीं धारा के अंतर्गत इसकी सूचना निकटस्थ पुलिस स्टेशन या मजिस्ट्रेट को देनीं चाहिए। इस प्रकार की कठिनाइयों से बचने के लिए, हर विषाक्तता के रोगी की सूचना पुलिस में दे देनी चाहिए। सरकारी अस्पताल का चिकित्सा अधिकारी सभी संदिग्ध विषाक्तता की सूचना पुलिस को देने के लिए बाध्य है। यदि रोगी मृत अवस्था में लाया, जाए, तो डाक्टर उसे मृत्यु का प्रमाणपत्र न दे और इसकी सूचना पुलिस को दे।
सामान्य विषों की चिकित्सा - देखें विष प्रतिकारक
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Gastrointestinal irritation
- ↑ diarrhea
- ↑ toxaemia
- ↑ hyocyanine
- ↑ coma
- ↑ cerebral
- ↑ Convulsions
- ↑ strychnine
- ↑ tone
- ↑ clonic
- ↑ Peripheral neuritis
- ↑ chronic
- ↑ gastrointestinal
- ↑ croton
- ↑ aloes
- ↑ cantharides
- ↑ neurotic
- ↑ hyoscyamus
- ↑ nux vomica
- ↑ aconite
- ↑ digitalis
- ↑ Asphyxiants
- ↑ conium
- ↑ curare
- ↑ emergency treatment
- ↑ toxin
- ↑ lavage
- ↑ catharsis
- ↑ diuresis
- ↑ antidote
- ↑ shock
- ↑ collapse
- ↑ manifestations
- ↑ demulcents
- ↑ stomach tubes
- ↑ gastric perforation
- ↑ aspiration
- ↑ powdered mustard
- ↑ strong soap suds
- ↑ gastro intestinal tract
- ↑ stuporous
- ↑ pnuemonia
- ↑ distention
- ↑ paste
- ↑ Catharsis
- ↑ Circulatory failure
- ↑ recumbent position
- ↑ parenteral fluids
- ↑ pulmonary oedema
- ↑ parenteral
- ↑ oropharyngeal
- ↑ intratracheal
- ↑ intubation
- ↑ depression
- ↑ coramine
- ↑ Dehydration
- ↑ Narcotic
- ↑ wash