महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 13 भाग-2
त्रयोदश (13) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
आप पवित्रों के भी पवित्र, मंगलों के भी मंगल, तपस्वियों के तप और देवताओं के भी देवता है। भीष्म जी कहते हैं - राजन् ! इस प्रकार ब्रहृा सहित देवताओं ने एकत्र होकर ऋक्, साम और यजुर्वेद के मंत्रों द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति की। तब मेघ के समान गंभीर स्वर में आकाशवाणी हुई - -देवताओं ! तुम युद्ध में मेरे साथ रहकर दानवों को अवश्य जीत लोगे'। तत्पश्चात् परस्पर युद्ध करने वाले देवताओं ओर दानवों के बीच शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले महातेजस्वी भगवान विष्णु प्रकट हुए। उन्होनें गरूड की पीठ पर बैठकर तेज से विरोधियों को दग्ध करते हुए -से अपनी भुजाओं के तेज और वैभव से समस्त दानवों का संहार कर डाला। महाराज ! समरभूमि में दैत्यों और दानवों के प्रमुख वीर भगवान से टक्क्र लेकर वैसे ही नष्ट हो गये, जैसे पतंगे आग में कूदकर अपने प्राण दे देते हैं। परम बुद्धिमान् श्रीहरि समस्त असुरों और दानवों को परास्त करके देवताओं के देखते-देखते वहीं अन्तर्धान हो गये। अनन्त तेजस्वी श्रीविष्णु देव को अदृश्य हुआ देख आश्चर्य चकित नेत्रवाले देवता ब्रहृाजी से इस प्रकार बोले -देवताओं ने पूछा - सर्वलोकेश्वर ! सम्पूर्ण जगत् के पितामह ! भगवन् ! यह अत्यन्त अद्भूत वृतान्त हमें बताने की कृपा करें। कौन दिव्यात्मा पुरूष हमारी रक्षा करके चुपचाप जैसे आया था, वैसे लौट गया ? यह हमें बताने की कृपा करें।
भीष्मजी कहते हैं - प्रभो ! सम्पूर्ण देवताओं के ऐसा कहने पर वचन के तात्पर्य को समझाने वाले ब्रहृाजी ने भगवान पद्यनाभ (विष्णु) - के पूर्वरूप के विषय में इस प्रकार कहा - ब्रहृाजी बोले - देवताओं ! ये भगवान सम्पूर्ण भुवनों के अधीश्वर हैं । इन्हें जगत का कोई भी प्राणी यथार्थरूप से नहीं जानता। गुणवानों में श्रेष्ठ निर्गुण परमात्मा की महिमा का कोई पूर्णत: वर्णन नहीं कर सकता। देवगण ! इस विषय मैं तुमलोगों को गरूड और ऋषियों का संवादरूप प्राचीन इतिहास बता रहा हूं। पूर्वकाल की बात है, हिमालय के शिखर पर ब्रह्मर्षि और सिद्धगण जगदीश्वर श्रीहरि की शरण ले उन्हीं के विषय में नाना प्रकार की बातें कर रहे थे। उनकी बातचीत पूरी होते ही चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु के वाहन महातेजस्वी पक्षिराज गरूड वहां आ पहुंचे। उन ऋषियों के पास पहुंचकर महापराक्रमी गरूड नीचे उतर पड़े और विनय से मस्तक झुकाकर उनके समीप गये।
ऋर्षियों ने स्वागतपूर्वक वेगवानों में श्रेष्ठ महान् बलवान् एवें तेजस्वी गरूड का पूजन किया । उनसे पूजित होकर वे पृथ्वी पर बैठे। बैठ जाने पर उन महाकाय, महामना और महतेजस्वी विनतानन्दन गरूड से वहांबैठे हुएतपस्वी ऋर्षियों ने पूछा।। ऋषि बोले - विनतानन्दन गरूड ! हमारे हृदय में एक प्रश्न को लेकर बड़ा कौतूहल उत्पन्न हो गया है। उसका समाधान करने वाला यहां आपके सिवा दूसरा कोई नहीं है, अत: हम आपके द्वारा अपने उस उत्तम प्रश्न का विवेचन कराना चाहते हैं। गरूड बोले - वक्ताओं में श्रेष्ठ मुनीश्वरों ! मेरे द्वारा किस विषय में आप प्रवचन कराना चाहते हैं ? यह बताइये । आप मुझे सभी यथोचित कार्यों के लिये आज्ञा दे सकते हैं।
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