अहमद बिन हंबल

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १०:४६, १० नवम्बर २०१६ का अवतरण ('{{भारतकोश पर बने लेख}} {{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी वि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
अहमद बिन हंबल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 317
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक श्री रियाजुर्रहमान शेरवानी


अहमद बिन हंबल अब्दुल्लाह अहमदुश्शबानी अहमद बिन हंबल का जन्म, पालन तथा अध्ययन बगदाद में हुआ और यहीं उनकी मृत्यु हुई। यह इस्लामी विद्वानों के चार प्राचीन विचारों की ज्ञानशालाओं में से एक के संस्थापक हैं। इसी प्रकार की एक अन्य शाला के संस्थापक इमाम शोफाई के शिष्य थे। हदीस की आत्मा के साथ उसके शब्दों की पैरवी पर भी बल देते थे। यह मुअतज़ल: (अलग हुए) फ़िर्के की स्वच्छंद विचारधारा के विरुद्ध दृढ़ चट्टानें माने जाते थे। खलीफ़ा मामूं ने, जो स्वयं मुअतज़ली थे, इन्हें बहुत प्रकार के कष्ट दिए और उनके बाद खलीफ़ा अलमुअतासिम ने भी इन्हें कारागार में डाला, पर यह अपने मार्ग से तनिक भी नहीं हटे। सन्‌ 855 ई. में इनकी मृत्यु पर लाखों स्त्री-पुरुष इनके जनाज़े के साथ गए, जिससे ज्ञात होता है कि यह कितने जनप्रिय थे। इस्लामी विद्वंमंडलियों के अन्य संस्थापकों की तरह इन्हें भी आज तक इमाम की सम्मानित पदवी से स्मरण किया जाता है। यह प्राचीन ज्ञान के अतिरिक्त हदीस के भी विद्वान्‌ तथा प्रचारक थे। इन्होंने हदीस का संग्रह भी प्रस्तुत किया था जिसका नाम 'मुसनद' है और जिसमें लगभग चालीस सहस्र हदीसें संगृहीत हें। धार्मिक बातों में कठोर होने के कारण अब इनके अनुयायियों की संख्या बहुत कम रह गई है और वह भी केवल इराक तथा शाम तक ही सीमित है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ