मुहम्मद अयूब फील्डमार्शल खॉं
मुहम्मद अयूब फील्डमार्शल खॉं
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 309 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
मुहम्मद अयूब फील्डमार्शल खाँ (1907-1972 ई.) पाकिस्तान के राष्ट्रपति। अवाटावाद में 14 मई 1907 में जन्म। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत सैंडहर्स्ट (इंग्लैंड) से सैनिक शिक्षा प्राप्तकर 1928 में भारतीय सेना में भर्ती होकर 14वीं पंजाब रेजिमेंट में संमिलित हुए। 1939-45 के द्वितीय महायुद्ध में भाग लिया। 1947 में ब्रिगैडियर बनाए गए। पाकिस्तान बनने पर वह पाकिस्तानी सेना में संमिलित हुए तथा अगले वर्ष मेजर जनरल के रूप में पूर्वी पाकिस्तान की सेना के कमांडर बनाए गए। 1950 में एडजुटेंट जनरल के पद पर उन्नति हुई। 1951 में पाकिस्तान की सेना के प्रधान सेनापति नियुक्त हुए। तदनंतर 1954-56 तक पाकिस्तान सरकार के सुरक्षा मंत्री पद पर काम किया। 1958 में उन्होंने चीफ मार्शल, ला एडमिनिस्ट्रेटर और समस्त सेना के कमांडर का भार ग्रहण किया; और उसी वर्ष उन्होंने राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा को पद त्याग करने को बाध्य किया तथा स्वयं राष्ट्रपति बन बैठे और 1966 तक इस पद पर रहे। यह काल एक प्रकार से पाकिस्तान में सैनिक शासन का काल था। इस काल में वे राष्ट्रपति के साथ साथ सुरक्षा मंत्री का भी कार्य देखते थे। उन्होंने भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ा जिसमें उनकी सेना को मुंह की खानी पड़ी। पश्चात् यहिया खाँ ने उन्हें पदत्याग करने पर विवश किया और मार्च, 1969 में उन्हें अपने पद से हटना पड़ा। तदनंतर वे देश छोड़कर बाहर चले गए, वहीं उनकी मृत्यु हुई। उन्होंने फ्रैंडस नाट मास्टर्स नाम से अपनी एक आत्मकथा लिखी थी जे 1967 में प्रकाशित हुई।
खाँ हाफिज अली (उस्ताद) सुप्रसिद्ध सरोदवादक। रामपुर के स्वर्गीय उस्ताद फ़िदा हुसैन के बाद सर्वोत्कृष्ट सरोदवादक हुए। दादा गुलाम अली खाँ बंगश (काबुल) के रहनेवाले थे और वहाँ वादक के रूप में प्रसिद्ध थे। वह भारत चले आए तथा तत्कालीन संगीतज्ञों से मिलने जुलने के लिए भारत के विभिन्न भागों में यात्राएँ कीं। वह फ़र्रूख़ाबाद के नवाब के यहाँ नियुक्त थे और ग्वालियर भी गए थे। वहीं सर्वप्रथम इस काबुली वाद्ययंत्र सरोद को भारत ले आए। हाफ़िज अली के पिता का नाम उस्ताद नन्हें खाँ था जो फ़िदा हुसैन के लड़कों में से एक थे। नन्हें खाँ रामपुर आकर रहने लगे। उन्होंने हाफ़िज अली को सरोद की बारीकियाँ समझाई। उन्होंने मथुरा के गणेशी चौबे से भी कई राग और ध्रुपद की बंदिशें सीखी। रामपुर में यह उस्ताद वज़ीर ख़ाँ के शिष्य रहे।
टीका टिप्पणी और संदर्भ