खाद
खाद
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 310 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
खाद और उर्वरक अति प्राचीन काल से ही यह ज्ञात रहा हैे कि खेतों की उपज बढ़ाने के लिए खाद की आवश्यकता होती है और तब से खाद के रूप में हड्डियाँ, काठ की राख, मछलियाँ और चूना पत्थर प्रयुक्त होते आ रहे हैं। पर ऐसा क्यों होता है, इसका कारण उन दिनों मालूम नहीं था।
पौधों की वृद्धि के लिए जो विभिन्न पोषक तत्व उपयुक्त होते हैं, उनके प्रभाव के उचित मूल्यांकन के लिए यह जानना आवश्यक है कि मिट्टी से पौधों को (1) आवश्यक पोषण तत्व, (2) जल के भंडार, (3) जड़ के श्वसन के लिए ऑक्सीजन और (4) सीधा खड़े रहने के लिये सहारा कैसे प्राप्त होते हैं।
पौधों के सूखे ऊतकों के भार का लगभग 95 प्रतिशत केवल कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का बना होता है। ये तीनों तत्व पौधों को वायु और जल से प्राप्त होते हैं। ये तत्व प्रकाश संश्लेषण के जटिल प्रक्रमों द्वारा पौधों के ऊतक बनाते हैं (द्र. प्रकाश संश्लेषण)। पौधों की वृद्धि के लिए कुछ अन्य आवश्यक वस्तुओ, जैसे विटामन, हारमोन तथा अन्य संकीर्ण कार्बनिक पदार्थों का निर्माण पौधों के अंदर होता है।
उपर्युक्त तत्वों के अतिरिक्त पौधों की वृद्धि के लिए कुछ और तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें कुछ को मुख्य तत्व और कुछ को अल्प तत्व कहते हैं। मुख्य तत्वों में कैलसियम, मैग्नीशियम, पोटासियम, नाइट्रोजन, फास्फोरस और गंधक है। अल्प तत्वों में ताँबा, मैंगनीज, जस्ता लोहा, मोलिबडेनम और बोरन है ।
जहाँ तक मिट्टी की उर्वरता का संबंध है, नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P) और पोटाशियम (K) बहुत अधिक महत्व के हैं। इन्हें NPK कहते हैं। ये अपेक्षया बड़ी मात्रा पौधों द्वारा मिट्टी से अवशोषित होते हैं। इस कारण ये तत्व मिट्टी से जल्द निकल जाते हैं और इनकी कमी हो जाती है। ये तत्व जलविलय रूप में पौधों द्वारा अवशोषित होते हैं। यदि ये तत्व विलेय रूप में न होते हो मिट्टी में रहते हुए भी पौधों को उपलब्ध न होते।
नाइट्रोजन-प्रोटीन और क्लोरोफिल का एक प्रमुख अवयव नाइट्रोजन है। प्रकाश संश्लेषण में यह सक्रिय भाग लेता है। जब मिट्टी में खेती की जाती है तब नाइट्रोजन चक्र पर प्रभाव पड़ता है। फसल काटने पर पौधों की केवल जड़े और खूटियाँ ही मिट्टी में रह जाती हैं, शेष भाग का नाइट्रोजन निकल जाता है। संकर्षण से भी मिट्टी का नाइट्रेट बहुत कुछ निकल जाता है। इससे प्रतिवर्ष नाइट्रोजन की क्षति बहुत अधिक होती रहती है।
फास्फोरस-शरीर क्रिया संचालन में एक महत्व का पदार्थ फास्फोपोटीन है। पौधों में इसकी कमी से जड़ों का उचित विकास नहीं होता और फसलों के पकने में भी बाधा पहुँचती है।
पोटासियम्ा-पोटासियम से प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में सहायता पहँुचती है।
खाद-कार्बनिक अवशिष्ट द्रव्य महत्व की खाद हैं, क्योंकि इन से मिट्टी की भौतिक दशा सुधरती है जो पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक है। कार्बनिक पदार्थो के आंशिक विच्छेदन से कुछ धुंधले भूरे रंग के गठन रहित कलिल पदार्थ बनते हैं, जिन्हें ह्मूमस कहते हैं। ह्मूमस से मिट्टी को नमी और पोषण के रोक रखने में सहायता मिलती है। इससे सूक्ष्माणुओं को अनुकूल परिस्थिति भी प्राप्त होती है।
गोबर खाद-खेत खलिहान के अवशिष्ट द्रव्यों में सबसे अधिक महत्व का पदार्थ गोबर खाद है। एक टन गोबर खाद से 10 से 15 पाउंड तक नाइट्रोजन और प्राय: पाँच पाउंड फास्फोरस प्राप्त होते हैं। सामान्य फसल के लिए मिट्टी में बड़ी मात्रा में गोबर खाद देने की आवश्यकता पड़ती है। गोबर खाद का संगठन एक सा नहीं होता, प्रत्युत गोबर और घासपात की प्रकृति पर, जिनसे यह बनती है, निर्भर करता है। पशुओं के चारे और खाद तैयार करने की स्थिति पर भी खाद की प्रकृति निर्भर करती है। पशुओं का मूत्र भी समान रूप से उपयोगी खाद है। विभिन्न पशुओं के मलमूत्र एक से नहीं होते और उनमें पोषक तत्वों की मात्रा भी विभिन्न रहती है।
पशुओं के मलमूत्र का औसत संघटन प्रतिशतता में
अवयव
ठोस मल
द्रव मूत्र गाय
घोड़ा
सूअर
भेड़
गाय
घोड़ा
सूअर
भेड़
जल
84
76
80
58
92
89
97.5
86.5
ठोस पदार्थ
16
24
20
42
8.0
11.0
2.5
13.5
राख
2.4
3
3
6
2.0
3.0
1.0
3.6
कार्बनिक पदार्थ
13.6
21
17
36
6.0
8.0
1.5
9.9
नाइट्रोजन
0.3
0.5
0.6
75
0.8
1. 2
0.3
1.4
फास्फोरस (P2O5)
0.25
0.35
0.45
0.6
- -
- -
0.12
0.05
क्षार
0.1
0.3
0.5
0.3
1.4
1.5
0.2
2.0
चूना और मैग्नीशिया
0.4
0.3
0.3
1.5
0.15
0.8
0.05
0.6
सल्फर ट्रायक्साइड (SO3)
0.05
0.05
0.05
0.15
0.15
0.15
0.05
0.25
नमक
0005
लेश
0.05
0025
0.1
0.2
0.5
0.25
सिलिका
16
2.0
1.6
3.2
0.01
0025
लेश
लेश
ये आँकड़े स्टोएकहार्ट (Stoekhardt) के है।
पशुओं का मलमूत्र सीधे खेतों में डाला जा सकता है पर उसे सड़ा गलाकर डालना ही अच्छा होता है। ऐसी खाद पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के साथ-साथ मिट्टी की दशा भी सुधारती है और मिट्टी में पानी को रोक रखने की क्षमता बढ़ाती है। गोबर को घासपात के साथ मिलाकर कंपोस्ट तैयार करके प्रयुक्त करना अच्छा होता है।
पशुओं का मूत्र भी अच्छी खाद है। पशुओं के चारे का अधिकांश नाइट्रोजन मूत्र के रूप में ही बाहर निकलता है। मूत्र के साथ यदि कंपोस्ट तैयार किया जाय तो वह खाद अधिक मूल्यवान होती है।
साधारणतया तीसरे या चौथे वर्ष खेतों में खाद डाली जाती है और केवल विशेष परिस्थितियों में ही प्रतिवर्ष डाली जा सकती है।
हरी खाद-ताजे, हरे पेड़, पौधों को मिट्टी में जोत देने से कार्बनिक पदार्थ मिट्टी में मिल जाते है। इससे ह्यूमस के साथ साथ ऊतकों में उपस्थित पोषक तत्व भी पौधों को मिल जाते हैं। ये हरे पौघे घासपात, फलीदार, पौधे, सनई, रिजका, सेंजी आदि होते है, जो खेतों में बोए जाते और प्रौढ़ होने पर जोत दिए जाते है। फलीदार पौधों के साथ साथ वेफीदार पौधे भी अच्छे समझे जाते है। इनके सिवाय ग्वानों (इसमें 25 प्रतिशत तक P2O5 रहता है), मछली चूरा (इसमें 5 से 10 प्रतिशत नाइट्रोजन और इतना ही फा2 औ5 रहता है) तथा तेलहन खली (इसमें 5 से 7 प्रतिशत नाइट्रोजन और 2 से 3 फा2 औ5 और 1 से 2 प्रतिशत K2O रहते है) भी कार्बनिक खाद है।
खनिज या अकार्बनिक खाद-सन् 1910 से पहले संयुक्त नाइट्रोजन के केवल दो ही स्रोत, कोयला और लवणनिक्षेप थे। अब स्थिति बदल गई है और नीचे के आँकड़ो से पता लगता है कि कृत्रिम रीति से संयुक्त नाइट्रोजन के निर्माण में कितनी प्रगति हुई है।
संसार के नाइट्रोजन उर्वरक उत्पादन के आँकड़े (ये संयुक्त नाइट्रोजन के 1,000 मीटरी टन में दिए गए है):
1959-60
1960-61 ऐमोनियम सल्फेट 3,087
3,146 ऐमोनियम नाइट्रेट (उर्वरक के लिए) 1,375
1,602 नाइट्रोचॉक (कैलसियम ऐमोनियम नाइट्रेट) 1,728
1,858 ऐमोनिया और अन्य विलयन 1,524
1,668 यूरिया (उर्वरक के लिए ) 597
780 कैलसियम साइनेमाइड 331
304 सोडियम नाइट्रेट 227
185 कैलसियम नाइट्रेट 442
465 नाइट्रोजन के अन्य रूप 3,037
3,335 गत वर्ष से वृद्धि 9.1 %
8.4 %
अधिकांश नाइट्रोजनीय उर्वरकों में नाइट्रोजन या तो नाइट्रिक नाइट्रोजन के रूप में, या ऐमोनिया नाइट्रोजन के रूप में, अथवा इन दोनो रूपों में रहता है। नाइट्रीकारी बैक्टीरिया के अधिक सक्रिय न रहने पर भी नाइट्रोजन पौधों को तत्काल उपलब्ध होता है। यह मिट्टी के कलिलों से अवशेषित नहीं होता और जल्द पानी में घुलकर निकल जाता है। दूसरी ओर मिट्टी कलिल से ऐमोनिया जल्द अवशोषित हो जाता है और नाइट्रीकारी बैक्टीरिया उसे धीरे-धीरे नाइट्रेट में परिणित करते है। यह जल घुलघुलाकर निकल नहीं जाता, बल्कि इसका प्रभाव खेतों में अधिक समय तक बना रहता है।
यूरिया में नाइट्रोजन सबसे अधिक रहता है। इससे इसका महत्व अधिक है। मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्माणुओं से उत्पन्न ऐंजाइमों के कारण यह बहुत शीघ्र ऐमोनियम कार्बोनेट में परिणत हो जाता है, जो फिर नाइट्रीकारी बैक्टीरिया से आक्सीकृत होकर जल, कार्बन डाइ-आक्साइड और नाइट्रिक अम्ल में परिणत हो जाता है।
फास्फोरस-पिसी हुई फास्फेट चट्टानों का सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा उपचारित करने से सुपरफास्फेट प्राप्त होता है। जलविलेय उर्वरकों में सुपरफास्फेट अत्यंत महत्व का होता है। सल्फ्युरिक अम्ल के उपचार से अविलेय ट्राकैलसियम फास्फेट [ Ca3 (PO4)2]विलेय मोनोकैलसियम फास्फेट [Ca (H2 PO4) 2 ] में परिणत हो जाता है। सुपरफास्फेट में 15 प्रतिशत तक P2O5 रहता है।
डबल या ट्रिपल सुपरफास्फेट में जल विलेय P2O5 45 से 50 प्रतिशत तक रहता है। यह उच्चकोटि के फास्फेट खनिज को फास्फरिक अम्ल द्वारा उपचारित करने पर (फास्फेट खनिज के तापीय विघटन से भी) प्राप्त होता है। पिसा हुआ फास्फेट खनिज अम्लीय मिट्टी के लिए, जिसका पीएच 6 से नीचा हो, लाभप्रद हो सकता है। ऐसी दशा में ट्राइकैलसियम फास्फेट धीरे-धीरे विघटित होकर उपलब्ध रूप में आ जाता है।
बेसिक स्लैग-कुछ पाश्चात्य देशों के लोहेके खनिजों में फास्फरस की मात्रा अपेक्षया अधिक रहती है। ऐसे खनिजों से प्राप्त स्लैग में 12 से 20 प्रतिशत P2O5 40 से 50 प्रतिशत चूना (Ca O), 5 से 10 प्रतिशत लोहा (Fe O और Fe2 O3), 5 से 10 प्रतिशत मैंगनीज (Mno) और 2 से 3 प्रतिशत मैग्नीशियम (Mgo) रहता है। उपोत्पाद के रूप में लाखों टन बेसिक स्लैग के इस्पात के कारखानों में प्रतिवर्ष उत्पन्न होता है। फास्फोरस खाद का यह सबसे सस्ता और उपयोगी स्रोत है।
नाइट्रोफास्फेट-फास्फेट चट्टान के सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा उपचार से कैलसियम सल्फेट भी बनता है। यह उर्वरक को हल्का बना देता है और फास्फोरस (P2O5) की प्रतिशतता को भी कम कर देता है। कुछ समय से फास्फेट चट्टान के विघटन के लिये नाइट्रिक अम्ल का उपयोग होने लगा है। इससे फास्फेट सांद्र ही नहीं होता, वरन् उसमें उपयोगी खाद नाइट्रोजन भी आ जाता है। इसमें कठिनता है कैलसियम नाइट्रेट के निकालने की, क्योंकि यह बहुत ही आर्द्रताग्राही होता है। इसके निकालने के लिए (1) हिमीकरण, या (2) कार्बन डाइ-आक्साइड के साथ अभिक्रिया, या (3) ऐमोनियम सल्फेट अथवा पोटासियम सल्फेट के साथ अभिक्रिया का उपयोग हो सकता है। भारत ऐसे देश के लिए, जहाँ गंधक की कमी है, नाइट्रो-फास्फेट का उत्पादन लाभप्रद हो सकता है।
पोटाशियम उर्वरक-पोटासियम उर्वरकों में सबसे अधिक उपयोग में आनेवाला लवण पोटासियम क्लोराइड नामक प्राकृतिक खनिज (KCI. Mg CI2, 6H2O) और कुछ अन्य खनिजों में यह रहता है और उससे अलग करना पड़ता है। कुछ पौधों के लिए पोटासियम क्लोराइड हानिकारक होता है। इससे पोटासियम सल्फेट अधिक पसंद किया जाता है।
कभी-कभी यह समस्या खड़ी हो जाती है कि कार्बनिक उर्वरक अच्छे हैं या अकार्बनिक। मिट्टी से पौधे उर्वरकों को आयन के रूप में ही ग्रहण करते हैं। यह महत्व का नहीं कि आयन कार्बनिक पदार्थो से जैविक विघटन द्वारा प्राप्त होते हैं या अकार्बनिक उर्वरकों से सीधे प्राप्त होते हैं। दोनों के परिणाम एक होते हैं। अंतर केवल यह है कि अकार्बनिक उर्वरकों में पोषक तत्व आयन के रूप में ही रहते हैं, जब कि कार्बनिक उर्वरकों में धीरे-धीरे विघटित होकर आयन के रूप में आते हैं। इस कारण कार्बनिक उर्वरकों की क्रिया अपेक्षया मंद होती है और गँवार किसानों के लिए इनका उपयोग निरापद होता है। ऐसी खादों में पोषक तत्वों, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटासियम की मात्रा भी कम रहती है, अत: अति का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। यह सच है कि मिट्टी के ह्यूमस के लिये कार्बनिक खाद अत्यावश्यक है। अकार्बनिक खाद से ह्यूमस नहीं प्राप्त होता। अत: कार्बनिक और अकार्बनिक खादों में संतुलन स्थापित होना आवश्यक है, जिसमें मिट्टी के ह्यूमस की वृद्धि के साथ साथ आवश्यक पोषक तत्व पौधों को मिलते रहें।
मिट्टी की उर्वरता के लिए ह्यूमस महत्वपूर्ण है। उसपर विशेष ध्यान देने से ही उर्वरता बढ़ सकती है। पौधों अथवा मिट्टी के विश्लेषण से मिट्टी में पोषक तत्वों के अभाव का पता लगता है। किंतु केवल मिट्टी के विश्लेषण से पोषक तत्वों की कमी का पता नहीं लगता। पोषक तत्व मिट्टी में होने पर भी वे ऐसे रूप में रह सकते है कि पौधे उन्हें ग्रहण करने में असमर्थ हों। अत: बहुत सोच समझकर ही उर्वरकों का व्यवहार करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान में हानि हो सकती है। यह सच है कि हमारी मिट्टी में सैकड़ों वर्षो से फसल उगाते उगाते उर्वरता का ्ह्रास हो गया है तथा उर्वरक के व्यहार से उपज बहुत कुछ बढ़ाई जा सकती है, पर आवश्यकता से अधिक अकार्बनिक उर्वकरों के व्यवहार से पाश्चात्य देशों, विशेषकर अमरीका में, हानि होती देखी गई है।[१] भारत में खाद के कारखाने-भारत में सुपर फास्फेट का उत्पादन 1906 में ही तमिलनाडू के रानीपेट स्थित एक कारखाने ने आरंभ कर दिया था; किंतु बड़े पैमाने पर उद्योग के रूप में रासायनिक खादों के उत्पादन का कार्य पाँचवें दशक के आरंभिक वर्षो में ही शुरू हुआ। 1950 में रासायनिक खाद के नौ कारखाने खुले और धीरे धीरे उनकी संख्या बढ़ने लगी। 1973 ई.आते आते इसके पचास कारखाने हो गए और इन कारखानों में 1973-74 के वर्ष में 10.60 लाख टन रासायनिक खाद तैयार हो गई है।
भारत सरकार ने 1961 में एक भारतीय खाद निगम की स्थापना की थी। उसके अंतर्गत छह कारखाने सिंदरी (बिहार), नांगल (पंजाब), ट्रेंब (महाराष्ट्र), गोरखपुर (उत्तरप्रदेश), नामरूप (असम) और दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) में हैं। बरौनी (बिहार), रामगुंडम् (अंाध्र प्रदेश), तालचरे (उड़ीसा), हल्दिया (पश्चिम बंगाल), कोरबा (मध्य प्रदेश), में नए कारखाने निर्माणाधीन हैं। पुराने कारखानों में नामरूप सिंदरी, ट्रांबे, गोरखपुर और नंगल का विस्तार किया जा रहा है।
खाद निगम के इन कारखानों के अतिरिक्त कुछ निजी कारखाने भी है जिनमें फर्टिलाइजर्स ऐंड केमिकल्स (त्रिवांकुरु) के अतंर्गत कोचीन और अलवाये के कारखाने हैं। यह रासायनिक खादों के उत्पादन में अग्रणी हैं। मद्रास और वाराणसी में निजी क्षेत्र के अन्य कारखाने हैं। राउरकेला इस्पात संयंत्र से संलग्न राउरकेला रासायनिक खाद का एक कारखाना है जो 1962 में चालू हुआ था। इस प्रकार का नैवेलि में एक कारखाना है जो नैवेली लिग्नाइट निगम से संबद्ध है।
कोक भट्ठी संयंत्र के 34 उत्पादों सहित सिंदरी, नंगल, ट्रांबे, राउरकेला, अलवाये, नैवेलि, नामरूप गोरखपुर, दुर्गापुर कोचीन तथा मद्रास स्थित सरकारी कारखानों और एन्नूर, वाराणसी, बड़ौदा, विशाखापत्तन, कोटा, गोवा और कानपुर के निजी कारखानों की कुल क्षमता 31 मार्च, 1974 को 19.39 लाख टन नत्रजन थी। 18 अन्य बड़ी परियोजनाएँ जिनकी समन्वित क्षमता 22.22 लाख टन नत्रजन और 6.62 लाख टन P2 O5 की है, कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं : इनमें से बरौनी खेतड़ी, तूती कोरन, और काँदला के नए कारखाने लगभग तैयार हैं तथा नामरूप कोटा और विशाखापत्तन के पुराने कारखानों का विस्तृतीकरण पूरा होने की अवस्था में है। इन कारखानों की क्षमता 8.22 लाख टन फास्फेट की है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं. ग्रं.-फूलदेव सहाय वर्मा : खाद और उर्वरक (1960)।