अध्वर्यु
अध्वर्यु
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 103 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | बलदेव उपाध्याय। |
अध्वर्यु वैदिक कर्मकांड के चार मुख्य ऋत्विजों में एक अन्यतम त्रत्विज्। 'अध्वर्यु' का अर्थ ही है 'यज्ञ करनेवाला'। वह अपने मुख से तो यज्ञमंत्रों का उच्चारण करता जाता है और अपने हाथ से यज्ञ की सब विधियों का संपादन भी करता है। अध्वर्यु का अपना वेद 'यजुर्वेद' है, जिसमें गद्यात्मक मंत्रों का विशेष संग्रह किया गया है और यज्ञ के विधानक्रम को दृष्टि में रखकर उन मंत्रों का वही क्रम निर्दिष्ट किया गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ