अलेक्सांदर प्रथम
अलेक्सांदर प्रथम
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 259 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री अवनींद्रकुमार विद्यालंकार |
अलेक्सांदर प्रथम (पावलोविच) रूस का ज़ार, पाल प्रथम का पुत्र, जन्म 23 दिसंबर, 1777 को सेंट पीटर्सबर्ग में। 24 मार्च, 1801 को राजगद्दी पर बैठा। पिता से दूर रहने और पाल तथा कैथरीन में मतभेद रहने के कारण इसको अपने आंतरिक भाव सदा छिपाए रखने पड़े। इस कारण इसके व्यवहार में सदा सच्चाई का अभाव रहा। नेपोलियन इसको उत्तर का स्फिंक्स कहा करता था।
पिता की हत्या होने पर यह सिंहासन पर बैठा। गद्दी पर बैठते ही इंग्लैंड के साथ संधि (15 जून, 1801) और फ्रांस तथा स्पेन के साथ मैत्री की। शासन के पहले चार साल उसने राज्य के आंतरिक सुधार में लगाए। रूस को एक संविधान देने का उसने प्रयत्न किया। करों को हटाया, कर्जदारों को ऋणमुक्त किया, कोड़े मारने की सजा का अंत किया और इस रीति से अर्धदासता को दूर करने का रास्ता बनाया। साथ ही उसने 'सीनेट' के कार्य और अधिकार निर्धारित किए, मंत्रालय का पुन: संगठन किया और नौसेना, परराष्ट्र, गृह, न्याय, वित्त, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा आदि के विभाग स्थापित किए। सेंट पीटर्सबर्ग में विज्ञान अकादमी की तथा कजान और खारकोव में विश्वविद्यालयों की भी उसने स्थापना की। शांतिकाल में शिक्षा, साहित्य और संस्कृति को प्रोत्साहन दिया।
अलेक्सांदर ने फ्रांस के विरुद्ध इंग्लैंड से संधि की (अप्रैल, 1805)। पीटर के प्रभाव में आकर आस्ट्रिया, इग्लैंड और प्रशा के साथ मिलकर इसने भी फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। परिणास्वरूप अनेक युद्धों में रूस को फ्रांस से हारना पड़ा। टिलसिट की संधि द्वारा दोनों फिर मित्र बने और नैपोलियन ने वालाचिया और मोलदीविया पर रूस का अधिकार स्वीकार किया।
यूरोप का सार्वभौम सम्राट होने की भावना से नैपालियन ने रूस पर आक्रमण किया। वोरोदिनी (7 सितंबर, 1812) में रूसी सेना हारी। पर शीघ्र पासा पलट गया। रूसी मास्को को अग्निसमर्पित कर पीछे हट गए। 15 सितंबर, 1812 को नैपोलियन ने आग में जलते मास्को में प्रवेश किया। निराश, निस्सहाय, सर्दी भूख से संतप्त फ्रेंच सेना वापस लौटी और थकी मांदी सेना को वीयाजमा में रूसी सेनापति मिचल ऐडेसचिव मिलोरोचिव ने पराजित कर उसका पीछा किया।
अलेक्सांदर ने अब यूरोप में स्थायी शांति स्थापित करने का यत्न किया। अब प्रशा, रूस और आस्ट्रिया की सम्मिलित सेना ने फ्रेंच सेना का लाइपजिग (16-19 अक्टूबर, 1813) में मुकाबला किया। 'सब राष्ट्रों का युद्ध' नाम से प्रसिद्ध इस संग्राम में नैपालियन पराजित हुआ और वह बंदी कर लिया गया। फ्रांस के नए राजा 18वें लुई को 'जार' ने फ्रांस को उदार संविधान देने के लिए बाध्य किया।
100 दिनों बाद नैपोलियन कैद से फ्रांस लौटा और वाटरलू के संग्राम में पुन: पराजित हुआ। वीएना कांग्रेस के निर्णय से रूस को वारसा के साथ पोलैंड का एक बड़ा भाग मिला। रूस ने आस्ट्रिया और प्रशा से संधि की जो इतिहास में 'पवित्र संधि' (होली एलायंस) के नाम से प्रसिद्ध है।
पुराने और नए झगड़ों के कारण तुर्की और रूस के मध्य छिड़ती लड़ाई अलेक्सांदर की बुद्धिमत्ता के कारण रुक गई। ज़ार 19 नवंबर, 1825 को अज़ीव सागर के तट पर मरा।
टीका टिप्पणी और संदर्भ