अलेक्से क्लाड क्लेरो
अलेक्से क्लाड क्लेरो
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 243 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
अलेक्से क्लाड क्लेरो (1713-1765 ई0) फ्रेंच गणितज्ञ। पेरिस में 7 (अथवा 13) मई, 1713 को जन्म। पिता गणित के अध्यापक थे। पिता के शिक्षण में गणित की शिक्षा में उसकी प्रतिभा ऐसी विकसित हुई कि बारह वर्ष की अवस्था में ही अपने फ्रेंच अकादमी के सम्मुख चार वक्र रेखाओं के गुण पर किए अपने आविष्कार के संबंध में एक निबंध पढ़ा। 1729 में उन्होंने देकोर्ट की वैश्लेषिक ज्यामिति को तीन आयामों तक विस्तृत करते हुए एक पुस्तक लिखी जो 1731 में प्रकाशित हुई। उसके प्रकाशित होते ही 18 वर्ष आयु में ही आयु संबंधी नियमों की अवहेलना कर फ्रांस की अकादमी ऑव साइंस ने उसे अपना सदस्य मनोनीत किया। 1736 में वह मानटियाँ के साथ मध्य रेखा के एक अंश की लंबाई की रायल सोसायटी ने उसे अपना फेलो बनाया। 1743 ई. में उसने अपनी सुप्रसिद्ध ‘क्लेरो थियोरिम’ पुस्तक प्रकाशित की जिसमें भिन्न अक्षांशों के स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण के नियंताक के जानने का सूत्र स्थापित किया है। 1750 में वह अपने चंद्रमा संबंधी सिद्धांत के प्रतिपादन पर सेंट केतु के चक्कर अकादमी से पुरष्कृत हुआ। 1759 में उसने हेली केतु के चक्कर पूरा करने के समय की गणना कर ख्याति प्राप्त की। इसके अनंतर भी वह गणित संबंधी महत्वपूर्ण शोध प्राप्त करता रहा। 17 मई, 1765 को पेरिस में उसकी मृत्यु हुई।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भगवानदास वर्मा