अलेप्पि
अलेप्पि
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 261 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री कैलासनाथ सिंह |
अलेप्पि अथवा अबलापुल्ला दक्षिण भारत के केरल राज्य का प्रमुख बंदरगाह एवं इसी नाम के जिले का प्रमुख नगर है (स्थिति 9° 30¢ उ. एवं 76° 20¢ पू.दे.)। यह क्वीलन से 49 मील उत्तर एवं एर्णाकुलुम् से 35 मील तथा कोचीन से 32 मील दक्षिण स्थित है। 18वीं सदी के अंत तक यह क्षेत्र जंगलों से ढका रेतीला मैदान था। महाराज रामवर्मा ने उत्तरी ट्रावंकोर-कोचीन क्षेत्र में डचों की व्यापारिक महत्ता एवं व्यावसायिक एकाधिकार को समाप्त करने के उद्देश्य से यहाँ बंदरगाह बनवाया था। सुविधा पाकर यहाँ देशी विदेशी व्यापारी बस बए और विदशों से इस बंदरगाह द्वारा आयात निर्यात होने लगा। व्यापार की वृद्धि के लिए पृष्ठक्षेत्र से नहर द्वारा बंदरगाह का संबंध जोड़ा गया। 18वीं सदी के अंत में बड़े-बड़े गोदाम एवं दूकानें राज्य की ओर से बनवाई गई। अत: 19वीं सदी की प्रथम तीन दशाब्दियों तक यह ट्रावंकोर का प्रमुख बंदरगाह हो गया था। साल के अधिकांश में यह बंदरगाह जहाजों के ठहरने के लिए सुरक्षित रहता है:
उद्योगों की दृष्टि से अलेप्पि नारियल की जटाओं से बनी चटाइयों के लिए सुप्रसिद्ध है। यहाँ से गरी, नारियल, नारियल की जटा, चटाइयां, इलायची, काली मिर्च, अदरक आदि का निर्यात होता है। आयात की वस्तुओं में चावल, बंबइया नमक, तंबाकू, धातू एवं कपड़े आदि प्रमुख हैं।
1901 ई. में नगर की जनसंख्या केवल 24,918 थी जो 1951 ई. में बढ़कर 1,16,278 हो गई। पिछली दशाब्दियों में यह दूनी से आधिक हो गई। अलेप्पि बंदरगाह का महत्व अब घट गया है, परंतु यह अब भी अनुतटीय एवं नदियों के विमुखीय प्रवाह द्वारा होनेवाले व्यापार के लिए प्रसिद्ध है। 1956-57 में इस बंदरगाह द्वारा 2,920 टन का आयात एवं 23,525 टन का निर्यात हुआ था।
टीका टिप्पणी और संदर्भ