अष्टधातु
अष्टधातु
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 292 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री बलदेव उपाध्याय |
अष्टधातु आठ धातुओं का संप्रदाय जिसमें सोना चाँदी, तांबा, रांगा, जस्ता, सीसा, लोहा, तथा पारा (रस) की गणना की जाती है। एक प्राचीन में इनका निर्देश यों किया गया है:
- स्वर्ण रूप्यं ताम्रं च रंग यशदमेव च।
- शीसं लौहं रसश्चेति धातवोऽष्टौ प्रकीर्तिता
सुश्रुतसंहिता में केवल प्रथम सात धातुओं का ही निर्देश देखकर आपातत: प्रतीत होता है कि सुश्रुत पारा (पारद, रस) को धातु मानने के पक्ष में नहीं हैं, पर यह कल्पना ठीक नहीं। उन्होंने रस को धातु भी अन्यत्र माना है।[१] अष्टधातु का उपयोग प्रतिमा के निर्माण के लिए भी किया जाता था तब रस के स्थान पर पीतल का ग्रहण समझना चाहिए; भविष्यपुराण के एक वचन के आधार पर हेमाद्रि का ऐसा निर्णय हे।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ततो रस इति प्रोक्त: स च धातुरपि स्मृतथ: