ओरांग ऊटान

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लेख सूचना
ओरांग ऊटान
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 302
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक शशधर चैटर्जी

ओरांग-ऊटान एक श्रेणी के बंदर हैं जिनको पूँछ नहीं होती। ये एशिया के दक्षिण-पूर्व में सुमात्रा और बोर्नियों द्वीपों में पाए जाते हैं। ओरांग-ऊटान नाम मलय देशवासियों ने दिया है। इन बंदरों के शरीर पर भूरे लाल रंग के घने और बड़े-बड़े बाल होते हैं। इनका ललाट ऊँचा होता है और मुँह सामने की ओर उभड़ा रहता है। अकस्मात्‌ देखने पर ये वृद्ध मनुष्य से प्रतीत होते हैं।

इनके पैर छोटे होते हैं परंतु हाथ इतने लंबे होते कि प्राय: भूमि तक पहुँचते हैं। नर ओरांग प्राय: 5 फुट या उससे भी ऊँचे और बड़े शक्तिशाली होते हैं। इनका भार 2.5 मन तक होता है। पूर्ण वयस्क नर ओरांग की कनपटी के निकट का चमड़ा उभड़ आता है, पर सभी ओरांगों में यह बात नहीं पाई जाती, कारण इनमें छह जातियाँ होती हैं। पूर्णावस्था प्राप्त होने पर नर ओरांगों में दाढ़ी भी उगती है। इनके कान बहुत छोटे-छोटे होते हैं। हार्थों के अँगूठे भी बहुत छोटे होते हैं। इनसे इनको अधिक सहायता नहीं मिलती। पैरों के अँगूठे अत्यधिक छोटे होते हैं और उनमें अंतिम भाग नहीं होता। इस कारण पैर के अँगूठे में नख नहीं रहते। इनके गले के भीतर एक बड़ी थैली श्वासनलिका से संबद्ध रहती है जिसके द्वारा इनके बोल की उद्घोषता बढ़ती है।

ओरांग अधिकतर वृक्षों पर रहते हैं और हाथों के सहारे एक डाल से दूसरी पर झूलते चलते हैं। इनकी गति मंद होती है। पहाड़ों की तलहटी के जलसिक्त जंगलों में ये वास करते हैं। वृक्षों के ऊपर शाखाओं और पत्तियों का मंच बनाकर ये विश्राम करते हैं, परंतु एक स्थान पर अधिक दिन नहीं टिकते। साधारणत: माता पिता और चार पाँच बच्चे एकत्र रहते हैं। इनकी प्रकृति नम्र होती है। मनुष्य इन्हें पकड़कर सर्कस में खेल दिखलाने के लिए पालते हैं।

ये प्रधानत: फल और वृक्षों की कोमल पत्तियाँ, डालियाँ और बाँस के कोमल प्ररोह आदि खाते हैं।

इनका जीवनकाल साधारणत: 25 वर्ष होता है, परंतु मनुष्य के संरक्षण में कुद ओरांग 40 वर्ष तक जीवित रहे हैं। एक बार में इनको केवल एक संतान पैदा होती है और गर्भ 8.5 महीने का होता है। ओरांग वंश की संख्या तेजी से घट रही है। अनुमान है कि संसार भर में अब ये 5000 से अधिक नहीं हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ